नया वर्ष कुछ ऐसा आवै।
सुंदर,सरस,सौम्य वाणी,
मन को पुलकित कर जावै।
रूप सदा निष्कपट रूप में,
अपना रूप दिखावै॥
नया वर्ष कुछ ऐसा आवै।
हर कोई अपना सा दीखै,
हर में हरि को पावै।
स्नेह और सुचिता का वारिधि,
सब जन मिल छलकावै॥
नया वर्ष कुछ ऐसा आवै।
मन से मन के तार मिलें,
सुर-सरिता रिसे-रिसावै।
रसना भी रस भर-भर करके,
गीत सुमंगल गावै॥
नया वर्ष कुछ ऐसा आवै।
प्राण-वायु पावन पवित्र हो,
जीवन दीर्घ बनावै।
सुखी रहें अचला के मानव,
ये गीत गवैया गावै॥
नया वर्ष कुछ ऐसा आवै।।
प्रो. सत्येन्द्र मोहन सिंह
रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय
बरेली