-१-
शान्ति नही आ पाएगी।
मुख से निकली सुर-वाणी भी,
अर्थ हीन हो जाएगी।।
जब पथ पर पग आगे बढ़ते,
बाधाएँ आ जाती हैं।
पर दृढ़ निश्चय हो यदि मन में,
स्वयं लुप्त हो जाती हैं।।
पौरुष और पराक्रम को,
जिसने
जीवन का ध्येय चुना।
हर कोई की रसना से,
जय जय हो का
उद्द्घोष सुना।।
धैर्य सदा फल दायी
होता,
संकट पार उतारे।
होती हार जीत में बदले,
हार, हार कर हारे।।
-२-
तो
क्या हम फिर रुक जायें।
उसको क्यों अपमान मान कर,
मन को दुखी बनायें।।
हो सकता कुछ प्रभु की माया,
अद्भुत रंग दिखाये।
थोड़ा रुक, आगे जो बढ़ते,
वही शीर्ष छू पाये।।
यह अवसर देता है ईश्वर,
पर समझ न कोई पाता।
सतत प्रयास लगन के बल पर,
सब सम्भव हो जाता।।
आगे बढ़ो रुको ना पल भर,
निशा बीत जाएगी।
खुशियों की अंजुलि भरकर के,
सुबह दौड़ आएगी।।
सत्येन्द्र मोहन सिंह
आचार्य
रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली।