सुनिए..! मुझे कुछ पैसे दीजिए, आज मैं सलोनी के लिए घुंघरू वाली पायल लेकर आऊँगी अगले सप्ताह उसका दूसरा जन्मदिन है।
बिल्कुल! मैं तो कहता हूँ तुम अपने लिए भी एक पायल लेती आना ।
अरे नहीं मुझे अभी जरूरत नहीं, अभी तो सलोनी को पहनाऊँगी। छमछम करती फिरेगी सारे घर में, देखना उसे चलने में कितना मज़ा आएगा।
हम्म्म ...अब तुमने तो मुझे भी उत्साहित कर दिया।
सलोनी का दूसरा जन्मदिन आ ही गया । छोटा सा कार्यक्रम रखा गया जिसमें करीबी रिश्तेदार, पडोसियों को बुलाया गया था। ईशा ने सलोनी को घुंघरू वाली पायल पहना दी सचमुच पूरा घर खनक उठा । सलोनी भी बहुत दौड़ - भाग कर रही थी घुँघरू की धुन उसे प्रफुल्लित कर रही थी ।
रात को जब सब सोने जा रहे थे,सासू माँ ने ईशा से कहा "बेटा सलोनी की पायल अब उतार देना, बच्ची है खेलते हुए गिर सकती है उसके पैरों से।"
पर...मम्मी जी सलोनी तो अभी कहीं बाहर अकेले जाती ही नहीं घर पर ही तो खेलती है। पहनने दीजिए न! अच्छा लगता है।
ठीक है भई जैसी मर्जी, हमारा काम समझाना था सो कह दिया । वैसे भी कुछ नुकसान होगा तो तुम्हे क्या मेरा बेटा खट रहा न ! फिर ले आएगा।
ईशा ने भारी मन से सोती हुई सलोनी के पैरों से पायल उतार दी । सुबह उठते ही सलोनी मचल उठी अपने खाली पैर देखकर पर बच्ची थी धीरे-धीरे भूल गई ।
स्कूल जाना शुरू हुआ और पायल पर प्रतिबंध भी । सलोनी जब अट्ठारह वर्ष की हुई तब फिर ईशा ने उसे पायल उपहार में दी जो घुंघरू वाली नहीं थी, क्योंकि अब उसे कॉलेज जाना था । सलोनी बड़े चाव से उसे पहनती और अपने ब्याह तक पहनती रही ।
शादी में उसे खूब सारी पायलें उपहार में मिली, पर सलोनी को सिर्फ माँ की दी हुई घुँघरू वाली पायल ही भाती । नई बहू के छमछम करते पदचाप से पूरा घर गूँज उठता और सलोनी खुद पर इठलाती। पर यह सुख भी चंद दिनों का था।
पहला सावन मायके में बीता, नई ब्याहता और सावन का महीना जी भरकर श्रृंगार किए गहनों से लदी, घुँघरू का छमछम शोर करती इठलाती फिरती।
मायके से वापस ससुराल आते ही अभिनव ने सलोनी पर अपनी अफसरी झाड़ते हुए कहा "अब उतार दो यह पायल वायल मुझे इसका शोर बिल्कुल पसंद नहीं एकदम गँवारों की तरह छमछम करती फिरती हो ।"
सलोनी की घुँघरू वाली पायल फिर उतर गई ।
तीज त्योहारों पर भी जब पहनती तो अभिनव को आपत्ति होती पर वह जिद्द से पहनती और जानबूझकर बजाती फिरती अपनी पायल जो बिना बोले उसका रोष भी प्रकट कर देती। लेकिन फिर उतारकर रख देती और शांत हो जाती पायल की गूँज और सलोनी की इच्छा ।
समय के साथ-साथ सलोनी एक प्यारी सी बिटिया की माँ बनी । उसकी नानी ने उपहार में वही घुँघरू वाली पायल भेजी जो सलोनी के पैरों से उतर गई थी ।
सलोनी अपनी बिटिया को अपने हाथों से वह पायल पहनाना चाहती थी। बड़े अरमान थे उसके पर अभी बिटिया बहुत छोटी थी ।
सलोनी के शरीर पर कैंसर ने दस्तक दे दी थी वह लगातार बीमार रहने लगी ।
अफरा-तफरी मच गई, बहुत ईलाज करवाया अभिनव ने पर मात्र पाँच साल तक ही खींच सकी सलोनी खुद को। डॉक्टर ने जवाब दे दिया था। उन्होने अभिनव को बुलाकर कहा " कुछ दिन बचे हैं अभिनव जी, बस अब उनकी जो इच्छा है पूरी कीजिए और खुश रखिए जितना हो सके।"
अभिनव सन्न रह गया, निःशब्द हो गया।घर आकर खुद को अकेले कमरे में बंद कर लिया । उसके सामने सबकुछ चलचित्र की तरह घूमने लगा । विवाह के बाद से अब तक की हर बातें, सुनहरे पल सबकुछ ।
अकेले में फफककर रोने के बाद मानो उसे कुछ याद आया हो ।
रात के ढाई बज रहे थे, उसने सलोनी के गहने वाले डिब्बे से वही घुँघरू वाली पायल निकाली और अपने हाथों से उसे पहनाने लगा ।
पर सलोनी के पैर अब फुदकते नहीं थे उसे पायल बोझ लग रही थी, फिर भी अभिनव की खुशी के लिए उसने पहन ली । सुबह के चार बज रहे थे, उसे घबराहट होने लगी दम घुटने लगा ।
पायल बजाकर ही अभिनव को जगाया । एक झटके से अभिनव उठ गया सलोनी के सिर पर हाथ फेरने लगा और उसे पानी पिलाया । सलोनी बुरी तरह हाँफ रही थी उसने पैर जरा सा उठाकर टूटे-फूटे शब्दों में कहा इस पायल को पीहू के ब्याह के समय उसके मेहँदी रचे पैरों में पहना देना... !! मैं गूँज उठूँगी !!!
वह बुरी तरह हाँफने लगी। किंकर्तव्यविमूढ अभिनव उसका हाथ छुड़ाकर भागा।
सावन की झमाझम बारिश में अभिनव डाॅक्टर को लेने निकल पड़ा लेकिन सलोनी चिरनिद्रा में सो चुकी थी। सुहागन जा रही थी पूरा श्रृंगार हुआ माँग सजाने के बाद अभिनव ने उसे घुँघरू वाली नकली पायल पहनाई अपनी खुशी के लिए।
सलोनी की अंतिम इच्छा अभिनव के कानों में रोज गूँजती।
आखिर बरसों बाद वह दिन आया और दुल्हन बनी बिटिया रानी को अपने हाथों से उसने वही घुँघरू वाली पायल पहनाकर कहा "तुम्हारी माँ की निशानी है इसे जी भरकर पहनना बेटा।"
फिर विदाई के समय दामाद बाबे के आगे हाथ जोड़कर कहा " मेरी बेटी का ध्यान रखना सदा चहकती रहे इसकी पायल की गूँज थमने न देना।"
अभिनव ने सलोनी की तस्वीर को देखा जिसमें आज तृप्ति दिखाई दी ।
गायत्री बाजपेई शुक्ला
रायपुर (छ .ग .)