युद्ध अन्त ही नहीं करते ,बल्कि ये खा जाता है,
बड़े से बड़े आदर्श ,
मूल्य और सभ्यता,
विचार और विचारधारा व सिद्धांत
जन जीवन,कला, संस्कृति , समरसता और प्रेम।
युद्ध जो विनाश करता वह लाखों करोड़ों वर्षों की,
मेहनत और त्याग,तपस्या का परिणाम है।
सभ्यता, संस्कृति का विकास एक पल में नहीं होता ,
पल्लवित होने में सदियां गुज़र जाती हैं,
तब होता है निर्माण शनैः शनैः किन्तु,
युद्ध करे निष्ठुर क्रूर स्थापन का कार्य।
अन्य अस्मिता को समाप्त करने का,
करता सामूहिक प्रयास,
युद्ध चेतना में भी विनाशकारी होते हैं।
द्वन्दात्मक चेतना का अतिरेक व्यवहार से,
जब आदर्श आपस में टकराते हैं तब,
उनमें हो जाता सहिष्णुता का अभाव ,
स्वतंत्रता, समानता व बंधुता का पराभाव ही,
युद्ध चेतना के जन्म का कारण बनता ।
युद्ध राज्यों के मध्य ही नहीं,
बल्कि लोगों और समूहों के बीच भी होता है।
किंतु इसके भक्षण का शिकार
मानव व संसाधन होते हैं।
हालांकि कभी कभी अस्तित्व के लिए
युद्ध ज़रूरी हो जाता है
लेकिन बहुत कुछ मिट जाता है
इसलिए किसी भी रूप में,
युद्ध हानिकारक है।
शांति, सदभाव, सहअस्तित्व
अस्मिता ज़रूरी है,
विवेक सदा युद्ध अवरोधक है,
दुनियां का अस्तित्व हेतु ज़रूरी।
डॉ० विवेक कुमार समदर्शी
( प्रवक्ता)
जीआईसी अर्जुनपुर गढ़ा,
फतेहपुर ।