कसम से ज़िंदगी में यूँ न बेबसी होती
अगर ताउम्र तेरी रहबरी मिली होती
न सजती दर्द की महफ़िल न मैं मिटी होती
बहार आने की उम्मीद गर बची होती
तुम्हारा साथ जो मिलता वफ़ा की राहों में
हमारे प्यार के हिस्से में हर ख़ुशी होती
तुम्हारी सादगी पे दिल न ये आया होता
न दिल मैं हारती तुझपे, ना बेख़ुदी होती
कभी तू झूठ ही कह दे, तू याद करता है
यक़ी होता नहीं मोहन फ़िर भी मुझे ख़ुशी होती
डॉ० मोहन लाल अरोड़ा
सिरसा, हरियाणा