गौरैया

अरुणिता
द्वारा -
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मेरे घर की मुँडेर पर,

भोर एक गौरैया आती।

प्याले में रक्खे दानों को,

चूँ-चूँ करती खाती जाती॥



उड़ जाती वो बिना बताये,

अंबर में जा कर छुप जाती।

न जाने अगले पल ही वो ,

चूँ-चूँ करती फिर आ जाती॥



इधर दीखती उधर दीखती,

अँगने में वो नज़र फिराती।

जहाँ दीखती पानी प्याला,

बैठ वहाँ पानी पी जाती॥



फिर उड़ कर चत्वर में जाती,

बैठ नीम पर गाना गाती।

बड़ा मनोरम लगता प्रभात में,

गाते-गाते फुर्र हो जाती॥



अगली सुबह पुनः वो आती,

चूँ-चूँ करती दाने खाती।

फिर उड़कर पानी पी जाती,

बैठ डाल पर गाना गाती॥



निशदिन वो एक पाठ पढ़ाती,

नित्य कर्म का ज्ञान सिखाती।

कैसे सुखी रहें जीवन में,

गीता की वो सीख दिलाती॥



आओ हम गौरैया पालें,

साफ़ करें मन के सब जाले।

पशु-पक्षी सबके हो जायें,

पर्यावरण को स्वच्छ बनायें॥



प्रो० सत्येन्द्र मोहन सिंह

महा०ज्यो० फुले रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय

बरेली, उत्तर प्रदेश 

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