आज किसी भी पत्र-पत्रिका में व्यक्ति सबसे पहले हास्य-व्यंग्य अथवा चुटकुले ढूँढ़कर पढ़ता है। यही स्थिति कमोबेश टीवी और फिल्मों की भी है। टीवी पर भी हास्य कार्यक्रम अधिकाधिक लोकप्रिय होते जा रहे हैं और कुछ हास्य फिल्में तो रोज ही किसी न किसी चैनल पर नजर आ ही जाती हैं। वह दिन दूर नहीं जब हास्य के अलग से स्वतंत्र चैनलों की बाढ़ आ जाएगी। क्या कारण है कि हास्य इतना लोकप्रिय और प्रासंगिक होता जा रहा है? व्यक्ति का मूल स्वभाव है आनंद और प्रसन्नता। प्रसन्नता की अवस्था में ही व्यक्ति हँसता और मुस्कराता है। यदि जीवन में प्रसन्नता का अभाव है तो हँसी के द्वारा ही व्यक्ति इस अभाव को पूरा करने का प्रयास करता है क्योंकि हँसने की स्थिति में व्यक्ति के शरीर में प्रसन्नता व आनंद प्रदान करने वाले हार्मोंस का उत्सर्जन होता है। हास्य का अर्थ है तनाव तथा परेशानी से तत्क्षण मुक्ति।
स्वाभाविक हास्य-विनोद आज जीवन से ग़ायब होता जा रहा है और इसका कारण है तनावपूर्ण जीवनशैली। इसी तनावपूर्ण जीवनशैली का मुकाबला करने के लिए आज हास्य अनिवार्य हो गया है चाहे वह बाहरी साधनों द्वारा ही क्यों न उत्पन्न किया जाए। आज हर व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के तनाव से गुजर रहा है क्योंकि उसकी अपेक्षाएँ तो बहुत बढ़ गई हैं लेकिन अपेक्षाओं की पूर्ति के साधन तो सीमित ही होते हैं। इस कारण जीवन अत्यंत जटिल हो गया है और व्यक्ति की प्रसन्नता का स्तर निरंतर कम होता जा रहा है। ऐसे में हास्य ही एकमात्र उपाय है जो उसे व्यथित मानसिकता से उबार कर तनावमुक्त कर प्रसन्नता और आनंद प्रदान कर सकता है। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी हास्य को पसंद करते हैं और इसका सीधा-सा कारण है सभी का तनाव और दबाव से ग्रस्त होना। यही कारण है कि साहित्य और संस्कृति में भी हास्य का अनुपात बढ़ता जा रहा है।
आज हर कोई तनाव से ग्रस्त है। विद्यार्थी अपनी पढ़ाई को लेकर तनावग्रस्त हैं तो युवा रोजगार को लेकर। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अनेक अध्ययनों से पता चलता है कि आज अधिकांश किशोर ही नहीं छोटे-छोटे बच्चे तक पढ़ाई के कारण तनावग्रस्त रहने को अभिशप्त हैं। नौकरीपेशा काम के बोझ से तनाव व दबाव में हैं तो बेरोजगार काम के अभाव में। युवा अपनी समस्याओं को लेकर दुखी और तनावग्रस्त हैं तो बुजुर्गों की अपनी समस्याएँ हैं जिनके कारण वे तनावग्रस्त हो जाते हैं। एकमात्र हास्य ही ऐसी औषधि है जो हर स्तर पर हर व्यक्ति को तनावमुक्त कर स्वस्थ कर सकती है। हास्य की इसी उपयोगिता के कारण इस पर निरंतर अनुसंधान हो रहे हैं और यह एक विज्ञान अथवा चिकित्सा-पद्धति के रुप में विकसित हो रहा है जिसे अंग्रेजी में गेलोटोथैरेपी तथा हिंदी में हास्योपचार अथवा हास्य-चिकित्सा कहा जाता है। आज हास्य-चिकित्सा का पर्याप्त प्रचार-प्रसार हो रहा है और एक पूरक चिकित्सा पद्धति के रूप में तो इसका कोई जवाब ही नहीं।
हँसना एक ऐसी प्रक्रिया है जो ध्यान के समान है। हँसने के दौरान व्यक्ति किसी भी प्रकार के विचारों से पूर्णतः मुक्त होकर तत्क्षण ‘अ-मन’ की अवस्था अर्थात् ‘नो थॉट स्टेट’ में पहुँच जाता है जिससे ध्यान के पूरे लाभ मिलते हैं। यह अवस्था अत्यंत क्षणिक है लेकिन इसका प्रभाव काफी देर तक बना रहता है। हँसने से न केवल व्यायाम के लाभ मिलते हैं अपितु श्वास-प्रक्रिया भी प्रभावित होती है अतः योगासन और प्राणायाम दोनों का अभ्यास इस क्रिया से हो जाता है और अंत में एकाग्रता की स्थिति में पहुँच जाते हैं जो ध्यान का ही एक रूप है। इसीलिए हास्य द्वारा चिकित्सा को हास्य-योग से भी अभिहित किया जाता है। इस संपूर्ण सृष्टि में केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो सही अर्थों में हँसने जैसी उपयोगी क्रिया कर सकता है अतः हँसना उसके लिए मनुष्य होने का प्रमाण है। जो किसी भी कारण से हँस नहीं सकता वह मनुष्योचित गुणों से वंचित हो जाता है।
हास्य का सबसे बड़ा लाभ ये है कि हास्य द्वारा हमारे शरीर की जीव-रासायनिक संरचना में परिवर्तन आता है। ध्यानावस्था की तरह ही हँसने की अवस्था में भी हमारे शरीर में तनाव उत्पन्न करने वाले हार्मोंस के स्तर में कमी आती है जिससे शरीर तनावमुक्त होकर स्वस्थ बनता है। साथ ही शरीर में उन लाभदायक हार्मोंस की मात्रा में भी वृद्धि होती है जो शरीर के लिए स्वाभाविक दर्द निवारक और रोग अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि हास्य द्वारा व्यक्ति न केवल तनावमुक्त होकर स्वस्थ हो जाता है अपितु हास्य से उसकी स्वाभाविक रोगावरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे वह अनेक बीमारियों से बचा रह सकता है और बीमार होने पर शीघ्र स्वस्थ हो जाता है।
हँसने से व्यक्ति प्रसन्न होता है और प्रसन्नता की अवस्था में शरीर में ऐसी कोशिकाओं का निर्माण भी होता है जो कैंसर जैसे भयानक रोग पैदा करने वाली कोशिकाओं को विनष्ट करने में सक्षम होती हैं और यह बात वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा स्पष्ट हो चुकी है। इस प्रकार हास्य भयानक घातक रोगों से बचे रहने की अचूक औषधि है और ऐसी औषधि जिसका कोई दाम भी नहीं देना पड़ता। हँसी आरोग्य के साथ-साथ दीर्घायु भी प्रदान करती है। साथ ही बुढ़ापा रोकने में भी हास्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। हास्य ही एकमात्र ऐसी औषधि है जो बाह्य रूप से हमारे चेहरे की झुर्रियों को रोकने में सक्षम है तथा आंतरिक रूप से हमें उत्साहपूर्ण बनाए रखने में भी क्योंकि हास्य व्यायाम के साथ-साथ एक उत्तम टॉनिक भी है। एक प्रकार से हार्मोनथैरेपी का पर्याय है हास्य।
ओशो तो हास्य को अत्यधिक महत्व देते हैं। उनके अनुसार गंभीरता एक आध्यात्मिक बीमारी है जबकि हँसी आध्यात्मिक स्वास्थ्य है। जो व्यक्ति हँस नहीं सकता उसके लिए रूपांतरण असंभव है। जब हम हँसते हैं तो हमारे दूषित मनोभाव तिरोहित हो जाते हैं। सारी पीड़ा, सारा तनाव पिघल जाता है, अहंकार काफ़ूर हो जाता है। सब कुछ पिघल कर तरल रूप में आ जाता है। इस तरलावस्था का मनचाहा उपयोग किया जा सकता है। पीड़ा को प्रसन्नता में तथा तनाव को शिथिलता में बदलने का यह अद्वितीय अवसर है। यही वास्तविक रूपांतरण है। हास्य रूपांतरण का श्रेष्ठ माध्यम और साधन है। हँसी के बाद जो शून्य उत्पन्न होता है और देर तक बना रहता है वह रूपांतरण के लिए श्रेष्ठ अवसर है। इस अवसर का उपयोग तनावमुक्त होकर प्रसन्न होने के साथ-साथ अपने मनोभावों को सकारात्मकता तथा उत्साह प्रदान करने के लिए भी किया जा सकता है। यही हास्य की सर्वोत्तम उपयोगिता व प्रासंगिकता है।
सीताराम गुप्ता,
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