बसन्त आगमन

अरुणिता
द्वारा -
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या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवी आराधना सांसारिक जीवन की नितांत आवश्यकता है। देवी, शक्ति व भक्ति का जीवंत स्वरूप है, जो मानवकल्याण के लिए अन्य संसाधनों से सर्वोपरि है। अतः संसार में देवी की पूजा –अर्चना,जीवन के सुख प्राप्ति व दुख निवारण के लिए आवश्यक माना गया है। हिंदी पंचांग के अनुसार हर माह किसी न किसी देव अथवा देवी के पूजन की तिथि निहित होती है, इन्हीं में से माघ महीने में बसंत ऋतु के आगमन होते ही बुद्धि, ज्ञान व संगीत की देवी माँ वागेश्वरी की आराधना संसार के समस्त जीव अपनी–अपनी भक्ति अनुसार करते हैं। इससे आध्यात्मिकता पर विश्वास बढ़ता है और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, सुख–समृद्धि चिरस्थाई बनी रहती है।

माघ महीने में बसंत पंचमी का दिन देवांगन समाज की कुल देवी माँ परमेश्वरी की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

"ग्राम देवी/देवता" – हर ग्राम में कोई न कोई ग्रामदेवता रहते हैं और हर समाज में एक कुल देवता या कुल देवी जिसे ईष्ट देव/देवी भी कहा जाता है, आराध्य होते हैं।

जैसे - ठाकुर देव, साँहड़ादेव, भँइस्सासुर, बहीदेवी, बघधर्रा , बूढ़ादेव इत्यादि। ऐसे ही माँ परमेश्वरी देवांगन समाज की ईष्ट देवी हैं।

कई पीढ़ी से हमारे पूर्वज माँ परमेश्वरी देवी की पूजा करते आ रहे हैं, इनसे ही देवांगन समाज की उत्पत्ति हुई थी, तब से लेकर आज तक प्रत्येक बसंत पंचमी को परमेश्वरी जयंती मनाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि माता परमेश्वरी मान्यता प्राप्त सिद्धपीठों में से एक है।

"उत्सव कैसे मनाते हैं" – बसंत ऋतु हर ऋतुओं का राजा कहलाता है, न ठिठुरती ठंड और न प्रचंड गर्मी। मद्धम-मद्धम पुरवाई चलती है। आम के वृक्षों में बौर भी आ जाते हैं। इन्हीं दिनों देवांगन समाज में सारे समाजसेवी, माॅं परमेश्वरी जयंती का भव्य आयोजन करते हैं। महीनों पहले ही तैयारियाॅं प्रारंभ हो जाती हैं। कहीं–कहीं अपनी शक्तिनुसार तीन दिवसीय या पांच दिवसीय परमेश्वरी पुराण का आयोजन किया जाता है। नन्हीं–नन्हीं बालिका देवी की रूप धर सजती–सँवरती हैं। और उत्सव को आकर्षक बनाती हैं, श्रद्धालु अपनी इच्छानुसार दान करते हैं। पुराण के अंतिम दिवस विशेष यज्ञ करते हैं तत्पश्चात महिलाओं व बच्चों द्वारा कलश यात्रा भी निकाली जाती है। कलश यात्रा में ज्यादातर पीले रंग के वस्त्रों का महत्व रहता है। पीला वस्त्र शुभ माना जाता है व विज्ञान के अनुसार पीला रंग शांति का प्रतीक है, जो मांँ परमेश्वरी को अत्यंत प्रिय है। सभी नारी वर्ग, ग्राम के निकट ताल से जल लेकर अपने–अपने कलश में भरते हैं व पुराण के अंतिम दिन सभी कलश विसर्जन के लिए पोखर में जाते हैं। माँ परमेश्वरी का अनुपम सौंदर्य देखते ही बनता है। प्रतिमा के साथ–साथ गांँव के कोने–कोने तक गाना–बजाना करते हुए लोग धूमधाम से कलश यात्रा की शोभा बढ़ाते हैं। कलश व प्रतिमा को आरती के बाद पोखर में विसर्जित कर दिया जाता है, तत्पश्चात प्रसाद वितरण के बाद पंडाल या भवन में बच्चों द्वारा अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया जाता है। नन्हे–नन्हे बच्चे नृत्य करते हुए अति सुंदर लगते हैं और सब का मन मोह लेते हैं।दर्शक उनका उत्साहवर्धन भी करते हैं।

अपने समाज में किसी प्रतिभावान बच्चे को उसके प्रतिभा का सम्मान मिलना गर्व की बात है। उन्हें समाज के द्वारा राशि/सम्मान भी भेंट किया जाता है।

"माघ महीने में बसंत ऋतु का महत्व"– इस ऋतु के आते ही धरती की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है, यानि उत्पादन क्षमता अन्य ऋतुओं की अपेक्षा अधिक होती है। शायद इसलिए श्री कृष्ण ने गीता में कहा है "ऋतुओं में हम वसंत हैं"।

"प्राकृतिक कारण" :– बसंत ऋतु को राजा कहने के अनेक कारण हैं, फसल तैयार होना, नये–नये पुष्पों का खिलना, चहुँओर हरियाली आना, हिंदू धर्म में अनेक मांगलिक कार्य होना, आम्र-बौर, शीतल सुरभित पुरवाई का बहना, सुहानी शाम, मन को मदमस्त करने वाली ऋतु; समस्त जीव प्राणी के अंदर एक नया उत्साह पैदा करती है। फूलों में भौंरे मॅंडराते हैं व तितलियांँ पुष्प रस का स्वाद लेती हैं, आम के बौर की भीनी खुशबू मन मोह लेती है। होली के रंग बिखरने लगते हैं। कवियों की लेखनी गतिशील होकर तरह–तरह के प्रणय गीत लिखती हैं, इसी कारण बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है।

"आध्यात्मिक कारण" :– कहा जाता है कि ब्रम्हा जी की शक्ति से माँ वीणापाणि प्रकट हुई। ब्रम्हा और देवी सरस्वती ने सारे सृष्टि का सृजन किया। माँ सरस्वती की वीणा की झंकार व सुमधुर संगीत से धरती में अनेक नई कोपलें विकसित होने लगीं। जीवों को जीवनदान मिल गया। आध्यात्मिकता के अनेक कारण है, भागवत गीता, कालिका पुराण में भी बसंत ऋतु का वर्णन किया गया है।

इस प्रकार से माघ का महीना हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण व आनंददायक है।

संसार के समस्त प्राणियों के जीवन में इस ऋतु का विशेष महत्व है, हर्षोल्लास लिए, सूर्य सा तेज; प्राणियों के जीवन में कुछ नया कार्य करने का अलग ही उत्साह नजर आता है। अतः कार्य में सफलता प्राप्त होती है।

"रोम–रोम हर्षित करे, फैलाए अनुराग।"
"ऋतु वसंत से सज धरा, पुष्पित होते बाग।।"

प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़



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