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गुड़ की चाय


    एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अमृतसर जाना हुआ। सात अक्तूबर 2023 को सुबह-सुबह होटल से तैयार होकर बाहर आया और ऑटो का इंतज़ार करने लगा। तभी एक ऑटो पास आकर रुका। मैंने पूछा कि पिंगलवाड़ा चलोगे। भगत पूरण सिंह द्वारा स्थापित पिंगलवाड़ा अमृतसर की एक प्रसिद्ध संस्था है जो अनाथ व परित्यक्त विकलांगों और मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्तियों का उपचार, उनकी परवरिश व पुनर्वास के लिए समर्पित है। पिंगलवाड़ा के सहयोग से ही माता महताब कौर हाल में दो दिवसीय 29वाँ अंतरराज्यीय मिन्नी कहानी/लघुकथा सम्मेलन आयोजित किया जा रहा था। ‘‘हाँ जी चलेंगे,’’ ऑटोवाले सरदार जी ने बड़े प्यार से कहा। मानाँवाला में जो पिंगलवाड़ा है वहाँ जाना है। कितने पैसे लोगे? ‘‘जी जो मर्ज़ी दे देना,’’ सरदार जी ने पुनः बड़े अपनत्व से कहा। फिर भी बता दो तो ठीक रहेगा। डेढ़ सौ दे देना जी। एकदम वाजिब पैसे माँगे थे अतः मोल-भाव का प्रश्न ही नहीं उठा। ऑटो में बैठने के बाद फ़ौरन ही बातों का सिलसिला शुरू हो गया। मैंने कहा, ‘‘सरदार जी रास्तें में कहीं चाय पिलवा दोगे अच्छी सी?’’ हाँ जी ज़रूर। बहुत अच्छी गुड़ की चाय पिलवाता हूँ आपको। कुछ देर बाद उन्होंने सड़क के किनारे चाय के एक ठेले पर ऑटो रोक दिया।

    ऑटो अंदर की तरफ़ खड़ा करके सरदार जी ने चायवाले से कहा, ‘‘ भाई एक चाय देना अच्छी सी बना के।’’ मैंने कहा ‘‘एक चाय? एक क्यों? दोनों पीएँगे ना।’’ सरदार जी ने कहा, ‘‘जी मैं भी पी लूँगा पर पैसे मैं दूँगा चाय के।’’ मैंने कहा कि ऐसा मत करो सरदार जी। पैसे मुझे देने दो लेकिन सरदार जी नहीं माने। ‘‘ठीक है सरदार जी, फिर ब्रेड पकौड़ा भी खिलवा दो, ’’वहाँ ताज़ा ब्रेड पकौड़े बनते देख मेरे मुँह में पानी आ गया था। सरदार जी ने कहा कि ब्रेड पकौड़ा भी खाओ। मैंने कहा कि आधा-आधा खाएँगे। जी जैसी आपकी मर्ज़ी। हम दोनों ने आधा-आधा ब्रेड पकौड़ा खाया और चाय पीई। चाय पूरी मीठी थी। अच्छी लगी क्योंकि मैं ऐसी ही चाय पीता हूँ। फीकी अथवा कम मीठे की चाय से सिर में दर्द हो जाता है। चाय तो अच्छी थी ही चाय पिलाने वाला और भी अच्छा था इसलिए बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था। चाय पीकर पुनः पिंगलवाड़ा के लिए चल पड़े। पिंगलवाड़ा मेन दिल्ली रोड पर ही है लेकिन वहाँ पहुँचने पर पाया कि नया हाईवे निर्माणाधीन होने के कारण रास्ता कुछ परिवर्तित था। पिंगलवाड़ा के पास कोई कट नहीं था। करीब डेढ़-दो किलोमीटर आगे जाने पर ही वापसी के लिए यूटर्न मिला।

    पिंगलवाड़ा के मेन गेट पर पहुँचने के बाद मैंने कहा कि आप मुझे यहीं उतार दीजिए लेकिन वे मुझे हाल के बिलकुल पास तक ले गए। गंतव्य पर पहुँचने के बाद मैंने पूछा, ‘‘सरदार जी कितने पैसे दूँ?’’ जी डेढ़ सौ रुपए। मैंने उन्हें दो सौ रुपए देने चाहे तो उन्होंने कहा, ‘‘जी मैं डेढ़ सौ ही लूँगा। मैंने पहले ही कह दिया था कि चाय के पैसे मैं दूँगा।’’ मैंने कहा कि चाय तो आपने ही पिलाई है और ब्रेड पकौड़ा भी आपने ही खिलाया है बड़े प्यार से। मैं उनके पैसे कैसे दे सकता हूँ? लेकिन जो ज़्यादा चक्कर लगाना पड़ा है उसके पैसे तो बनते हैं न? पेट्रोल भी बहुत महँगा है। बड़ी मुश्किल से उन्होंने अतिरिक्त पैसे स्वीकार किए। ‘‘वाहे गुरू जी दी किरपा हुई ताँ फिर मिलाँगे,’’ ये कहकर उन्होंने हाथ जोड़कर विदा ली। लगा कि कोई अत्यंत आत्मीय हमेशा के लिए दूर जा रहा है। अगले दिन वापसी में उनसे फिर मुलाक़ात हो सकती थी और एक बार फिर उनके साथ चाय पीने का आनंद लिया जा सकता था लेकिन उनका फोन नंबर लेने का ध्यान ही नहीं रहा। ख़ैर, ये मुलाक़ात भी कभी नहीं भूल पाएगी। और उस गुड़ की चाय की मिठास के फीका पड़ने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।


सीताराम गुप्ता,
ए.डी. 106 सी., पीतमपुरा,
दिल्ली - 110034