अवसाद.. एक मानसिक अवस्था, जो रीतेपन का एहसास कराती है.. शायद शून्य में खो जाना ही अवसाद है। जहां सबकुछ बेमानी लगने लगे। सारे सांसारिक आकर्षण फीके प्रतीत हों। अक्सर ये उच्च घराने, उच्च पदासीन लोगों पर ही डेरा डालता है.. । शायद ..निम्न वर्ग जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में इसको परिभाषित ही न कर पाता हो। जीवन में कुछ प्यास ,ठीक उतनी ही ज़रूरी है जितना जीवन जीने के लिए जल ..। सबकुछ मिल जाना भी जीवन को अधूरा ही रखता है.. क्योंकि पूर्णता जीवन की नियति नहीं। जहां बाहरी पूर्णता प्राप्त हुई आंतरिक अधूरे होना शुरू हुआ। जीवन में रुक्मणी बनने से बेहतर है राधा बने रहना..। सपने पूरे होने से ज़्यादा ,आँखों में ,सपनों का होना आवश्यक है। राधा, कृष्ण की ना होते हुए भी मंदिरों में विराजमान है। और रुक्मणी राधा बनने की आस में है.. रूक्मणी ,राधा बनना चाहती थीं और राधा ,रूक्मणी बनना चाहती थीं। तो चाहत तो कभी पूरी हुई ही नहीं फिर नैराश्य कैसा? ऐसे ही हमारा जीवन है ..कुछ पाने की चाहत ज़रूरी है, मिलना न मिलना नियति है ,लेकिन कर्म करना हमारा दायित्व है । जीवन सम नहीं चलता ..कुछ जुड़ता है तो बहुत कुछ पीछे छूट जाता है.. पीछे छूटने पर मलाल कैसा? नवसृजन के लिए पुराना छूटता ही है। जीवन कोई सरिता सा नहीं, कि कोई घाट बनाकर सलिल का प्रवाह रोक लिया जाये.. ये तो झरने सा बहता है.. जिसमें उतार चढ़ाव आते जाते रहते हैं ..इनमें सेतु बनाना संभव ही नहीं। ठहराव नियति नहीं। बहते जाना ही जीवन है। सुख और दुख की अनगिनत फ़ाइलें जीवन के दफ़्तर में चलती रहती है। लाज़मी है कि हम इन फ़ाइलों के साथ पूरा न्याय करें ,बस इनको अपना न माने। फ़ाइलों को सहेजना हमारा दायित्व है ,लेकिन उनमें अपना वजूद खोना बेमानी है। सुख दुख में ,सुखी दुखी होना हमारा स्वभाव है.. होना भी चाहिए , लेकिन ये हमारे साथ ही हुआ है ..ये भावना या तो अहम को जन्म देती है या अवसाद को प्रभावी बनाती है।हम भी ईश्वर के मोहरे हैं, सुख दुख दोनों ही हमें स्पर्श कर सकते हैं। हम सभी दो दुनियाँ में जीते है.. एक तो समक्ष जो दुनियाँ है ,और दूसरी नितांत निजी , जिसमें हम थोड़े स्वार्थी होते हैं। इस निजी दुनियाँ की असफलता ही अवसाद की जननी है। यदि आप स्वयं में मज़बूत हैं तो बाहरी कोई दुख आपको प्रभावित नहीं करेगा। अवसाद से ग्रस्त होना स्वयं के हाथ में तो नहीं, लेकिन इसको कुछ दिग्भ्रमित अवश्य किया जा सकता है। सत्रंगी दुनियाँ में तथाकथित सुख और दुख अनंत है ,लेकिन हमें तटस्थ रहना है। सोच रखनी है कि सुख सदा रहता नहीं दुख का भी अंत आता है। हर काली रात के बाद उजियारी रात आती है। दिन और रात की तरह सुख और दुख का भी चक्र है.. जिसको हमें धैर्य से निकालना है। रुकना जीवन नहीं, न ही जीवन से मुख मोड़ना है.. एक दर बंद होगा तो दूसरा दर अवश्य ही खुलेगा। कुछ रास्ते बंद ही इसलिए होते हैं कि नये रास्ते हमारी बाट जोह रहे होते हैं। सदैव सकारात्मकता से प्रफुल्लित रहें। जान है तो जहान है।
रश्मि वैभव गर्ग
15-A तलवंडी
कोटा, राजस्थान