बेटी भी तुम्हारा अंश है,
माँ! तुम तो समझो,
तुम भी कभी किसी की बेटी थी।
पिता तो अपने पुरुषार्थ से मजबूर है,
पुरुष है वह तो,
मगर, बेटी तो तुम जनती हो।
यह समाज पुरुषों का है,
बेटी तो औरत बनती है,
'बेटा ही हो बेटी तेरे'
बेटी से खुद उसकी माँ यह कहती है।
पिता भी कहते है-
पिता पर बोझ बेटी,
ससुराल में भी बेटी परायी,
'बेटा वंश चलायेगा'
बेटी तो रोटियाँ सेकने दुनिया में आयी।
तेरी खौक में माँ!
जब मैं पनप रही थी,
'तुम्हारा अंश हूँ'
सोचकर खुद को सुरक्षित पाती थी।
मगर, माँ!
तुम भी उनके साथ थी उस दिन,
मेरी हत्या की साजिशों को रचाने में,
क्या तुम बेटी नहीं थी ?
बेटी थी मैं माँ!
मगर, तुम्हारा तो वंश थी,
बेटी थी मैं माँ!
मगर, तुम्हारा तो अंश थी...।
अनिल कुमार केसरी,
भारतीय राजस्थानी।
वरिष्ठ अध्यापक 'हिंदी'
ग्राम देई, जिला बूंदी, राजस्थान।