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बहती है पुरवाई



माह फरवरी आतुर है मन,

धरा प्रेम बरसाई,

सुरभित गुलाब की पंखुड़ियाँ,

शूल मध्य इठलाती।

देख दृश्य पुलकित है कण-कण,

कोयल गीत सुनाती।।

पात–पात तरुवर झूमे जब,

संग बसंती आई।।



प्रणय गीत का भाव जगाती,

कवियों की कविताएं।

स्पर्श हृदय को करें शब्द ये,

श्रृंगारित हो जाएँ।।

पग–पग जीवन उल्लास भरे,

बहती है पुरवाई।।



पीले–पीले सरसों फूले,

बृक्षारण महकाते,

भॅंवरे तितली मिलकर सारे,

बैठ वहाँ हर्षाते,

लगे झूलने बौर आम के,

झूम उठे अमराई।।



रूप बसंती सज बैठी जस,

दुल्हन नई नवेली,

कभी सुहाने दृश्य दिखाती,

रचती कभी पहेली,

बंधे प्रीत में प्रियतम सारे,

बजती है शहनाई।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़