उत्तरायण को रवि चढ़ा ,
अस्त हुआ सर्दी का सूरज |
मंद मंद बयार चली उड़ाती,
गलियों खलिहानों की रज ||
आंगन के वृक्ष उदास खड़े,
सुकोमल पात वसुधा पर पड़े |
रजनी शीतलता बरसाती,
दिन को सूरज तपता |
प्रतीक्षा में मौन वसंत,
अगवाई का महामंत्र जपता ||
रोज तरु को जल पिलाते,
होता माली का मन उदास |
पतझड़ को आना ही होता है,
मिटाने वसंत की प्यास ||
लेती आई है सदा नई कोपले ,
पुराने पत्तों की कुर्बानी |
बस यही है विलक्षण त्याग,
पतझड़ की प्रेम कहानी ||
दुर्गा शंकर आमेटा