तुम्हारा जाना यूं हुआ
कि आंखों के आंसू
तुम्हें विदाई देने को
पलकों में ही ठिठक गए
और आंखें पीतीं रहीं वेदना
मगर जब तुम ओझल हुए
मन लगा पूछने --
क्यों जाने दिया
और क्या तुम लौट आओगी
पुकारूंगा जब?
तभी आंखों की कोर से
छलक पड़े दो बूंद
नि: शब्द !
आंसू लौटते हैं क्या?
रोक लो।
राजीव रंजन 'पहाड़ी'
खुफिया ब्यूरो से सेवा निवृत्त अधिकारी
गोड्डा, झारखण्ड