रमेश और राधिका दोनो एक ही स्कूल मे बचपन से पढते थे । दोनो का साथ साथ स्कूल मे दाखिला हुआ था । इधर रमेश के पिता रमेश का दाखिला कराने गये उधर राधिका के पिता । दोनो बच्चों का दाखिला हो गया स्कूल मे । दोनो बच्चे साथ साथ खेलने लग गये खूब मस्ती से खेल रहे थे दोनो मे बहुत अच्छी दोस्ती हो गई चंद मिनटो मे ये देख कर दोनो के पिता बहुत खुश हो रहे थे ।
स्कूल का दूसरा दिन :-
रमेश के पिता रमेश को छोड़ने स्कूल आये तो रमेश के बाल मन ने अपने पिता से कहा :-
रमेश :- पापा राधिका भी आ गई होगी । वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त बन गई है ।
रमेश के पिता :- हा बेटा वो तो तुम्हारी अच्छी दोस्त बन गई है ।
रमेश ,:- जी पापा मै उसी के साथ क्लास मे बैठूंगा ।
रमेश के पिता :- ठीक
रमेश क्लास मे चला गया
इधर राधिका के पिता भी राधिका को स्कूल मे छोड़ने आ गये ।
तो यही बात राधिका ने भी अपने पिता से कहा । और क्लास मे चली गई ।
दोनो बच्चे एक दूसरे को देख कर बहुत खुश हो गये और दौड़ कर एक दूसरे से गले लग गये । और एक ही साथ बेंच पर बैठ गये ।
रमेश राधिका से बोला : - तुम से पहले मै स्कूल मे आया था ।
राधिका :- मै भी कल से तुमसे पहले आ जाएंगे स्कूल मे देखना ।
रमेश :- नही हम दोनो साथ साथ आएंगे ।
राधिका :- हा ये ठीक रहेगा
स्कूल मे लंच के समय दोनो साथ साथ बैठ कर लंच करते थे दोनो एक दूसरे का लंच आपस मे बाट बाट खाते थे और खेलते थे । जब स्कूल मे छुट्टी होती थी तो दोनो एक दूसरे के बैग मे कॉपी किताब रख देते थे और एक दूसरे का हाथ पकड़ कर स्कूल के बाहर आते थे फिर दोनो अपने अपने घर बाय बाय करते हुए चाले जाते थे । धीरे धीरे समय बीतता चला गया । वो दोनो बच्चे अब धीरे धीरे बड़े होने लग गये और आगे क्लास मे जाने लगे । दोनो बच्चों मे आपस के पढ़ाई का कॉम्पिटिशन होता था ।
कौन ज्यादा नम्बर लाएगा । दोनो बच्चे क्लास मे अव्वल आते थे ।
अब दोनी बच्चे धीरे धीरे यौवन अवस्था की ओर चल पड़े । अब उनका इस तरह से मिलना जुलना उन्ही लोगो को खटकना शुरु हो गया जो उनको कल साथ मे खेलते देख कर खुश होते थे ।
राकेश के पिता :- राकेश एक बात मेरी ध्यान से सुन लो अब तुम्हारा राधिका से ज्यादा मिलना जुलना ठीक नही है ।
राकेश :- पापा ऐसा क्यु
राकेश के पिता :- नही मोहल्ले मे कुछ कानाफूसी होती है ।
राकेश :- क्या होती है बचपन से हम लोग साथ साथ खेलते और पढ़ते हुए बड़े हुए है ।
उधर राधिका के घर मे भी
राधिका के पिता :- राधिका तुम्हारा राकेश से ज्यादा बात करना और मिलना जुलना ठीक नही है ।
राधिका :- पापा ऐसा क्यु हम लोग बहुत अच्छे दोस्त है । हम लोग बचपन से साथ साथ पढे है और साथ साथ बड़े हुए है और साथ साथ पढ रहे है ।
राधिका के पिता :- नही जो मैने कह दिया वो कह दिया
राधिका अपनी मम्मी से :- मम्मी पापा ये क्या कह रहे है ।
राधिका की मम्मी :- ,बेटा पापा जो कह रहे है वो ठीक ही कह रहे है ।
अब दोनो बच्चे स्कूल मे अलग अलग बैठने लग गये और एक दूसरे को देख देख कर उदास हो रहे थे । लेकिन दोनो बच्चे अपने मम्मी पापा की हिदायत को एक दूसरे से बता नही रहे थे । मन ही मन दुखी रहते थे । एक दिन दोनो से रहा नही गया और एक दूसरे से पूछ ही बैठे कि हम दोनो लोग अलग क्यु बैठते है ।
राकेश :- क्या करे राधिका घर मे मना किया गया है की ज्यादा राधिका से मिलना जुलना बाते करना ठीक नही है ।
राधिका :- अरे यार मुझसे भी यही कहा गया है । यार ऐसा क्यु होता है । हम लोग बचपन से लेकर अभी तक साथ साथ रहे है ।
राकेश :- क्या करे राधिका ठीक है हम दोनो अलग अलग ही बैठगे । अब ज्यादा नही मिलेंगे ।
राधिका :- ठीक है यार
कुछ समय पश्चात दोनो का इंटर हो गया स्कूल के आखिरी दिन दोनो एक दूसरे छुप के गले लगे और अपने अपने घर चले गये ।
लेकिन दोनो के मन मे बहुत से सवाल उठ रहे थे । लेकिन कुछ कर नही सकते थे । मन मसोस कर रह जाते थे ।
उधर राधिका का एडमिशन महिला कालेज मे हो गया और राकेश का अलग कालेज मे हो गया । धीरे धीरे समय बीतता चला गया । दोनो बच्चे अपने अपने जीवन पथ पर अग्रसर थे । दोनो की शादी हो गई ।
दुर्भाग्यवस राधिका की शादी एक अशिक्षित व्यक्ति से हुई और और राकेश के शादी एक शिक्षित लड़की से हो गयी । दोनो अपनी अपनी जिंदगी मे व्यस्त हो गये । दुर्भाग्य ने राधिका का साथ साथ नही छोड़ा । उसके पति की मृत्यु बहुत कम समय मे ही हो गई । उसके चार बच्चे भी हो गये थे , वो भी छोटे थे अब राधिका के सामने उसके जीवन यापन का प्रश्न खड़ा हो गया की कैसे अब इन बच्चों को पाले । ससुराल से भी कोई सहायता नही मिलती थी , और वो अपने मायके से कोई सहायता लेती नही थी । खैर उसने बी एड कर रख्खा था । उसने बच्चों को पढ़ाना शुरु किया किसी तरह उसने अपना जीवन यापन करना शुरु कर दिया और अपने बच्चों को भी पढ़ाना शुरु किया । इसी दौरान उसकी सरकारी स्कूल मे अध्यापिका की नौकरी मिल गई । अब उसका जीवन ठीक से चलने लग गया । धीरे धीरे उसका एक बेटा सी ए बन गया उसकी शादी हो गई । वो दूसरे शहर मे जा कर बस गया । इसी तरह उसके सब बच्चे किसी न किसी रोजगार मे लग गये । दूसरे बच्चे की भी शादी हो गई । लेकिन उसको बहुओ से स्नेह नही मिला । फिर उसका जीवन अकेला ही रह गया । अब वो अपने दो बच्चों को लेकर अलग रहने लगी उसी घर मे । अलग खाना बनाना सारा अपना काम खुद करना । और अपने कालेज को जाना । लौट के घर आना फिर वही काम अपना खुद करना उसके जीवन की दिनचर्या बन गई थी । मगर राधिका का चरित्र बहुत अच्छा था । कुछ समय पश्चात उसके ऊपर फिर दुख आ पड़ा । उसके तीसरे बेटे को की तबियत बहुत खराब हो गई अब वो उसको लेकर अन्य अन्य शहरो मे दिखाने के लिए भटकने लगी तमाम पैसा उसका अपने बेटे के इलाज मे लग गया । किसी तरह दिल्ली के एक नामी मेडिकल कालेज से इलाज शुरु हुआ तो उसके बेटे को आराम मिला अब वो ठीक है । इसी बीच उसका सम्पर्क एक पुरुष से हुआ फेसबुक के माध्यम से । जब वार्तालाप शुरू हुआ तो पता चला की वो तो रमेश है उसके कालेज का साथी । अब दोनो मे अच्छी बातचीत शुरु हुई एक दूसरे के हमदर्द बन गये । इसी दौरान राधिका के ऊपर दुख का पहाड़ ही टूट पड़ा । उसके जवान बेटे की मृत्यु हो गई अचानक । जो राधिका को बहुत प्रेम करता था । उस से वो फिर टूट गई । कि हे भगवान दुनियाँ के सारे गम मुझे ही दिया । फिर बहुत दिनों से राकेश से बातचीत नही हुई । अब इधर राकेश बहुत चिंतित होने लगा कि क्या बात है राधिका क्यु नही बात कर रही है । इधर राकेश की माँ बहुत बीमार हो गई और बिस्तर पकड़ लिया तो राकेश ने अपनी जाब को छोड़ कर अपनी माँ की सेवा मे लग गया । राकेश का जीवन सुखमय था । उसके एक बेटा और एक बेटी थी । बेटी की शादी अच्छी जगह हो गई और बेटा का विवाह करना है । राकेश को किसी प्रकार की चिंता नही थी । उसकी पत्नी भी बहुत शांत स्वभाव की थी । राकेश घर मे बैठे बैठे कविता और कहानियो का लेखन करता था । उसकी कई कविताओं का प्रकाशन भी हो चुका था । वो अपने मे ही खुश था । तो एक दिन राकेश की कबिता पर राधिका की लाइक आई । तो उसने मैसेंजर पर पूछा की आप बात क्यू नही करती हो तो उसने बताया की मेरे जवान बेटे की मृत्यु हो गई है इस दुख से मै बहुत दुखी हूँ । तो राकेश को भी बहुत दुख हुआ की परेशानिया तो राधिका का साथ ही नही छोड़ रही है । खैर धीरे धीरे दोनो लोगो मे बातचीत जारी है । लेकिन दोनो लोगो के बीच मे सामाजिक बंधन है अब दोनो एक नही हो सकते है । दोनो का परिवार है उम्र का पड़ाव है चाहते हुए भी दोनो एक दूसरे से दूर है लेकिन चाहत से भरपूर है । रोज दोनो एक दूसरे का हालचाल पूछते है अधिकार से । रमेश अपना अधिकार राधिका पर दिखता है लेकिन मर्यादा मे और राधिका भी अपना अधिकार दिखाती है मर्यादा मे । रमेश हमेशा राधिका से कहता है की बस " तेरा इंतज़ार " तुम जब भी चाहो मेरे पास आ जाओ मेरा दर खुला है तुम्हारे लिए । दोनो अपने अपने प्यार को पाने के इंतज़ार मे है ।
उत्तम कुमार तिवारी "उत्तम"
३६१ " का पुराना टिकैत गंज
लखनऊ, उत्तर प्रदेश