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जल ही जीवन


बहता हुआ ये झरना, बहता हुआ यह पानी

कण-कण में है बसा तू,कण-कण की जिंदगानी



वादी, नदी, पवन सब, तेरा ही गुण ये गाते

आया न होता जग तू, जीवन कहाँ से पाते

पत्थर - पहाड़ वन में, छाई ! तेरी जवानी

कण-कण में है बसा तू,कण-कण की जिंदगानी



पानी बिना परिंदे, पानी बिना वो धंधे

तू साँस है सभी का, यश गाते तेरे बन्दे

महिमा अनंत तेरी, दुनिया तेरी दीवानी

कण-कण में है बसा तू ,कण-कण की जिंदगानी



तन - मन से खेलती हैं, वो डैम की दीवारें

उगते हैं खेत सोना, तुझसे हैं ये बहारें

गंगा में बह रहा है, सदियों से तेरा पानी

कण-कण में है बसा तू ,कण-कण की जिंदगानी



आती है बाढ़ जब भी, सोता है तू शजर पे

क़ातिल तेरी अदाएँ, दिखती हैं हर शहर पे

तेरी रस भरी ये आँखें, करती हैं छेड़खानी

कण-कण में है बसा तू ,कण-कण की जिंदगानी



बहता हुआ ये झरना, बहता हुआ यह पानी

मोहन कण कण मे है बसा तु कण कण की जिंदगानी ।।



डॉ० मोहन लाल अरोड़ा

ऐलनाबाद सिरसा हरियाणा