ऐ, सांस थोड़ा धीमे चलो न,
अभी ढ़ग से जीये ही कहां है|
अभी प्रतीक्षा में है मेरी आंखें
अभी संयोग की रैना बाकी है|
अधुरे है अहसास अभी मेरे,
आशाओं की दरारें भरी कहां है|
कि ठहरो अभी, तपती धूप में हूँ,
अभी राहत की शाम दूर बड़ी है|
संबधों के धागों में उलझी हुई हूँ|
हृदय के गिरह खोलने बाकी है|
कुछ रूठे हैं, कुछ अपने है|
आंखों में ही सपने ठहरे हैं|
उम्मीदें तकाज़ा कर रही है
अभी उतारने कर्ज बाकी है|
अभी सीपी में बंद है मन का मोती,
आवरण हटा कर चमकना बाकी है|
चल रही हूँ राहगीरों के बीच,
अभी भीड़ की पहचान बाकी है|
मंजिल की ओर कदम बढ़ रहें हैं|
थोड़ा तो ठहरो, अभी शुरुआत बाकी है|
रश्मि मृदुलिका
देहरादून, उत्तराखण्ड