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वह सांवली लड़की

 



वह सांवली लड़की,

दुबली पतली कृषकाय,

कभी नहीं रही,

मेरे कैनवास में ,

जीवन के डोमेन में।



वह रोज मेरे दिल में आती,

अपना काम निपटा कर चली जाती।

दिल के फर्श पर छाई,

अहंकार की गर्द को झाड़ती ।

सरलता के पोंछे से,फर्श को चमकाती । मिथ्याभिमान के दागों को छुड़ाती ।



घृणा के बर्तनों को,

प्रेम जल से मांजती।

दिल की सेल्फ में पड़ी,

अस्त-व्यस्त महत्वाकांक्षाओं की ,

किताबों को जमाती।

संयमित करती।



उसके रोज के काम ने,

मेरे दिल को बना दिया उपवन।

सुंदर संवेदनशील ।

जीवन संगिनी के सवाल पर,

घरवालों, मित्रों ,रिश्तेदारों के ,

आए अनेक सुझाव।

मुझे कोई सुझाव ,

नहीं आया रास।



मेरे दिल के कैनवास को ,

घेरे थी वह सांवली लड़की।

दुबली पतली लड़की की,

उपस्थिति सदा रही।

मेरे दिल को सजाने संवारने में।

जी हां वह मेरी जीवन संगिनी,

थी, है, रहेगी।

जीवन के आज भी,

जीवन के बाद भी।

ब्रह्मानन्द गुप्ता ब्रह्मपाद,

हिंडौन सिटी राजस्थान