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मेरा बचपन कितना अच्छा था


बचपन का वह दौर बहुत अच्छा था,

जब मैं एक छोटा बच्चा था।


हर फिक्र से आजाद था,

तब मैं किसी खुशियों का नहीं मोहताज था।


न जाने क्यूं हम बड़े हो गए,

सारी खुशियों से परे हो गए।


लौटा दे मुझे को ई मेरा, वही दौर,

जब मैं एक छोटा बच्चा था।


वो खुशनुमा सा पल था,

जहां बीता हुआ मेरा कल था।


जहां हुआ करती थी, खुशियां भी इकट्ठी,

जब होती थी मेरे पाठशाला की छुट्टी।


तब हम मिट्टी के खिलौने से भी खुश हो जाया करते थे,

उड़ती हुई तितलियों को भी पकड़ लाया करते थे।


बचपन में जब हम पकड़ लेते थे, किसी का हाथ,

वो बिना शर्तों के देते थे साथ।


न जाने क्यूं हम बड़े हो गए, उदासियों के बीच खड़े हो गए,

मेरा बचपन कितना अच्छा था जब मैं एक छोटा बच्चा था।


मेरा बचपन कितना अच्छा था।

दिव्या सिंह 'रूपल'

कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश