कम पड़ेगा बादलों
का गाँव सारा
एक मुट्ठी ओस लेकर
क्या करेंगे
प्राण प्यासे हैं
हमारे कोख से ही
जी रहे सदियों
पुराना घाव लेकर
खो गया सूरज कहीं
पर वादियों में
जिसे आना था नया
बदलाव लेकर
हवा ,पानी की वसीयत हो चुकी है
हम महज अफसोस लेकर
क्या करेंगे
दाम क्या होगा
पसीने की फसल का
नये युग में बहस
लम्बी चल रही है
थक गये हैं देख कर
सारी कवायद
झुक गये सीनों में
धूनी जल रही है
याद है सारी नसीहत
,हर सुभाषित
फिर नया उद्घोष
लेकर क्या करेंगे
कलम करके हमें जो
पौधे लगे हैं
वो नये परिवेश में
ही ढल गये हैं
उन्हें भी इस बात
से मतलब नहीं है
पेड़ के पत्ते
पुराने गल गये हैं
हमें अपनों ने भी
जी भर के ठगा है
गैर के गुण दोष
लेकर क्या करेंगे
सूर्य प्रकाश मिश्र
बी 23/42 ए के
बसन्त कटरा (गाँधी चौक )
खोजवा, दुर्गाकुण्ड
वाराणसी 221001