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थोड़ा सा ख़ालीपन


ख़ाली हाथ नहीं हूँ

फिर भी ना जाने क्यूँ …..!

कुछ ढूँढती रहती हूँ अपने हाथों की लकीरों में

जो चाहा ,बढ़ कर पाया ।

फिर भी ना जाने क्यूँ……!

कुछ तलाशती रहती हूँ अपनी तक़दीरों में

आज़ाद हूँ …..! नहीं है कोई बंधन ।

फिर भी ना जाने क्यूँ …..!

महसूस करतीं हूँ ज़ंजीरों में ।

क्या होती है ख़ूबसूरती !

नहीं जानती …!

फिर भी ना जाने क्यूँ …!

ख़ुद को निहारती रहती हूँ तस्वीरों में ।

कट रहा है सफ़र ज़िंदगी का।

नहीं जानती…..! कितना रह गया है कम !

ख़त्म हो गए हैं कितने ही ग़म ।

फिर भी ना जाने क्यूँ ….!

सुकून की तलाश में है मन ।

जी चाहता है ….।

होकर बेफ़िक्र ..रम जाऊँ फ़क़ीरों में ।

व्यक्त नहीं हूँ अस्त भी नहीं हूँ ।

फिर भी ढूँढतीं हूँ थोड़ा सा ख़ालीपन।

होकर मस्त खो जाऊँ ख़ुद की जागीरों में ।



आशा भाटिया
जनकपुरी, नई दिल्ली