पिछले कुछ समय से एक बदलाव देखने को मिल रहा है भाषा-बोली में | पहले पूर्वी
उत्तर प्रदेश के लोग यदि प्रयत्नपूर्वक भी हिन्दी का खड़ी बोली रूप बोलते थे तो भी
उनमें वो पूर्वांचली मिठास आ ही जाती थी जो हम सहारनपुर और मेरठ परिक्षेत्र के
लोगों की बोली में नहीं होती | यह भी देखा
जाता था कि जो पूर्वांचली लोग सालों तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रह रहे होते थे
वे भी बोलते ही पहचान लिए जाते थे | अब तो जब प्रयागराज जैसे नगर में जब किसी समूह
में उपस्थित होने का मौका मिलता है तो पता ही नहीं चलता कि वक्ता इसी नगर से या
कहीं और से क्योंकि वहाँ भी औपचारिक सभाओं में पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसी ही सपाट
खड़ी-बोली बोली जाने लगी है | यह अन्तर कुछ इसलिए भी न्यून हो गया है कि पश्चिमी
उत्तर प्रदेश में भी अब – कर दो, दे दो जैसे अक्खड़ शब्दों की जगह अब कर दीजिये और दे दीजिये
जैसे शब्द बोले जाने लगे | इसके अतिरिक्त हमारे देखते ही देखते उर्दू/फारसी के ढेरों शब्द हिन्दी परिवार की
भाषाओँ से तेज़ी से गायब हो गये | सहारनपुर और मेरठ परिक्षेत्र की खड़ी बोली में
ढेरों शब्द पहाड़ी क्षेत्र की भाषाओँ, हरियाणवी और राजस्थानी
बोलियों के भरे पड़े थे जो पहले तो नगरों की बोलचाल से गायब हुए और अब गाँवों की
बोलचाल से भी गायब हो रहे हैं |
अगर यह परिवर्तन ऐसे ही चलता रहा हर जगह एक जैसी ही हिन्दी प्रचलित हो जायेगी
| हिन्दी परिवार वें बोलियाँ-भाषाएँ पूरी तरह विलीन हो जायेंगीं और हमारी देशी
संस्कृति की खुशबुओं को धारण किये हुए थीं | पहले इन क्षेत्रीय भाषाओँ में भारी
संख्या में लोकोक्ति और मुहावरे और होते थे जो अब धीरे-धीरे बहुत पीछे छूटते जा
रहे हैं क्या आपने भी इस तरह के परिवर्तन
को अनुभव किया है ? किया है तो हमें भी अपने अनुभव से अवश्य अवगत कराएँ |
जय
कुमार
प्रधान-सम्पादक
दशमी, कृष्णपक्ष आषाढ़, विक्रम सम्वत् २०८१