हमेशा रोती रहती है
क्या रात भर तू सोती नहीं है
जब भी तुम्हारे बारे में सोचता हूँ
कितने ही चेहरे सामने आ जाते हैं
मीरा का भजन गूँजने लगता है
कृष्ण प्रेम में मीरा रोती थी
अश्रुधार में तू ही तो समाई करूणा
ओ करूणा, यशोधरा को भी नहीं छोड़ा
जीवन भर सिद्धार्थ के बिना
बिछोह वेदना में तडपती रही वह
उर्मिला के शयनकक्ष में प्रविष्ट हो गई
लक्ष्मण के बिना गिरते रहते आँशु
तन, मन अश्रुपूरित
प्रेम विहवलता पर तरस नहीं आई
वन में लक्ष्मण जगता रहे
परन्तु उसकी उर्मिला चैन से रात में सोए
ना बहाए कोई आँशु
यही तो याचना की लक्ष्मण ने निद्रा देवी से
ओ करूणा, क्यो नहीं की तुमने ऐसी याचना
उर्मिला को छोड पलायन भी कर सकती थी
कृष्ण बिन राधा बहुत व्याकुल रही
व्यथित राधा रोती थी शयनकक्ष में
और तू साथ देती थी करूणा
एक स्त्री होकर दूसरी स्त्री का दर्द
तो समझा होता
ओ करूणा ,कैसे निष्ठुर हो गई
वन वन फिरने वाली श्री राम की
सीता ने कितना दुख सहा
दुष्ट रावण ने सीता का हरण भी कर लिया
अशोक वृक्ष के नीचे न जाने
कितनी बार रोई सीता
ओ करूणा, तुम्हें सीता का साथ
देना चाहिए था सान्त्वना भी नहीं दी
तू सीता के पास गई ही क्यों
मदर इण्डिया फिल्म की वो गरीब स्त्री राधा
तो खेत में हल बन गई
खेत की जुताई ही नहीं
बच्चों का पालन पोषण करने वाली
बेचारी राधा पर टूटा था मुसीबतों का पहाड
अत्याचारियों से सन्तप्त
ओ करूणा ,तू कहाँ पोंछ पाई
उस राधा के आँशु
प्रमोद झा
सम्पर्क, काशीराम नगर,
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश