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ऊपर वाला कमरा



अंजना देवी अपने सर्व सुविधायुक्त शानदार कमरे के नरम मुलायम व आरामदायक बिस्तर पर लेटी हुई, ऊपर छत की ओर टकटकी लगाए न जाने कब से बिना पलक झपकाए निहार रही थी| सहसा उनका चंचल मन अतीत के आसमान में उड़ने के लिए अपने पंख फड़फड़ाने लगा| शरीर स्थूल होता है, उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्वयं चल कर जाना होता है किंतु मन के संग तो ऐसी कोई पाबंदी नहीं होती, वह जब जी चाहे उड़ान भर कर वहां पहुंच जाता है जहां व जिस काल में उसे जाने की चाह होती है| अंजना देवी का मन भी पंख पसारे तेज वेग के संग उड़ान भरता हुआ अपने अतीत के उन गलियारों में जा पहुंचा जहां कभी अंजना देवी स्वयं इस बंगले की महारानी हुआ करती थी और यह पूरा घर उनके इशारों पर चलता था|

"कमली......... अरी ओ कमली कहां रह गई है, जल्दी यहां आ|"

"जी बीबी जी आ रही हूं " कहती हुई कमली अपने आंचल का पल्लू अपने दोनों हथेलियों से दबाती हुई तेज कदमों से अंजना देवी के समक्ष आ खड़ी हुई|

"अरे तुम कहां चली गई थी|" अंजना देवी ने कमली के आते ही उस पर प्रश्न उछाला|

"बीबी जी वो अम्मा जी के कमरे में पानी का जग रखने गई थी|" कमली ने हिचकते हुए कहा|

"अच्छा......... अच्छा......... ठीक है जा कर डेटॉल से हाथ पैर साफ कर के आ|" यह कहते हुए अंजना देवी के चेहरे पर घृणा के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे|

"जी" कह कर जब कमली जाने लगी तभी अंजना देवी ने दोबारा कमली को हिदायत देते हुए कहा-

" सुन अच्छी तरह से हाथ साफ करना, यश के लिए नाश्ता बनाना है, उसके स्कूल से आने का समय हो गया है|"

"जी" कहती हूई कमली मन ही मन बुदबुदाने लगी - "हूँ ......... बड़ी आई, ऐसे कह रही है मानो अम्मा जी कोई अछूत हो| बेचारी अम्मा जी बुजुर्ग है, ठीक से चल-फिर नहीं सकती है, बीमार है तो क्या हुआ.........! इसका मतलब यह थोड़ी है कि उनका कमरा अलग-थलग कर दो, खाने पीने का बर्तन अलग कर दो और उनके कमरे में जाने के बाद डेटॉल से हाथ पैर धोओ| हद है जितने बड़े लोग उतने ही चोचले|" कहती हूई कमली डेटॉल से अपने हाथ साफ करने लगी|

इस भव्य, सुसज्जित एवं आलीशान घर पर अंजना देवी का ही हुकूमत व राज चलता था| वह इस घर की इकलौती बहू जो थी, हालांकि इस बंगले की असली मालकिन अंजना देवी नहीं बल्कि उनकी सासू मां मंदिरा देवी थी| जो पिछले कुछ सालों से बीमार चल रही थी| वैसे तो उन्हें कोई विशेष बीमारी नहीं थी| क‌ई बार वृद्ध अवस्था ही अपने आप में एक बीमारी का रूप धारण कर लेती है| वही मंदिरा देवी के साथ भी था| बुढ़ापे की वजह से दुर्बल होता शरीर, जीभ का स्वाद, चटकारे लेने की आदत और फिर अपचन की दिक्कत| इन सभी के गिरफ्त में थी मंदिरा देवी और उनकी बहू अंजना इन्हीं सब की वजह से परेशान|

अंजना को लगने लगा था कि उनकी बूढ़ी होती सासू मां अब उनकी स्वतंत्रता में बाधक बनती जा रही है| जैसे जैसे वह बूढ़ी होती जा रही थी, अंजना की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही थी| पहले जब मंदिरा देवी स्वस्थ थी, वह पूरा घर संभाल लिया करती थी, सारी जिम्मेदारियां बखूबी निभाती थी किन्तु जैसे -जैसे बूढ़ी होती हड्डियां जवाब देने लगी, मंदिरा देवी दिन प्रतिदिन अपनी बहू अंजना पर निर्भर होने लगी| अब आलम यह था कि मंदिरा देवी अपने किसी ना किसी कार्य के लिए अंजना को क‌ई बार आवाज लगाती|

‌‌मंदिरा देवी का इस प्रकार अंजना पर बढ़ती निर्भरता उन्हें अपने आरामदायक जीवन में खलल का एहसास कराने लगी थी, कहने को तो घर पर नौकर चाकर की कमी ना थी, किन्तु मंदिरा देवी उन्हें ना बुला कर अंजना को ही आवाज लगाती| अंजना कभी अपनी सहेलियों के साथ होती तो कभी आराम कर रही होती, कभी टीवी देख रही होती, यदि वह कभी कुछ नहीं भी कर रही होती तो भी उन्हे अपनी सासू मां का इस तरह उसे बेवजह बुलाना, अपने पास बैठने का आग्रह करना, अनावश्यक बातों का पिटारा खोलना अंजना को बिल्कुल भी नहीं भाता|

आज स्वयं को उसी अवस्था में एकांत, परिवार से उपेक्षित पा कर अंजना देवी अपने द्वारा किए गए

कृत्य पर पछतावे के संग शर्मिन्दा भी है| समय का यह दोहराव आज अंजना देवी को वहीं ला कर पटक दिया जिसका प्रारंभ कभी उन्होंने अपनी सासू मां मंदिरा देवी को इस आलीशान सर्व-सुविधायुक्त कमरे में ला कर किया था|

जीवन का स्वरूप भी कितना न्यायप्रद होता है बिल्कुल एक प्रतिध्वनि के समान| कल तक अंजना देवी इस बंगले की मालकिन थी और आज उनके अपने ही घर में उनका सुध ख़बर लेने वाला भी कोई नहीं| किसी ने कितना सही कहा है हम जो भी करते हैं उसका प्रतिफल हमें इस जन्म में प्राप्त हो ही जाता है | समय के साथ बीतता हुआ हर एक क्षण अंजना देवी को उस कटु सत्य से रूबरू करा रहा था कि उन्होंने किस तरह अपनी सासू मां मंदिरा देवी को इस ऊपर वाले कमरे तक पहुंचाया था|

परत दर परत चलचित्र की भांति अंजना देवी को अपने ही कृत्य अपनी आंखों के समक्ष दिखाई देने लगे|उन्हें स्मरण हो आया कि किस तरह उन्होंने स्वांग रच कर अपनी सासू मां के बुढ़ापे को एक गंभीर बीमारी का रूप दे दिया और उन्हें बीमार सिद्ध कर दिया| इतना ही नहीं उन्होंने किसी को इस बात की भनक भी नहीं होने दी कि वह अपनी सासू मां से छुटकारा पाना चाहती है और बड़ी ही चालाकी से अपनी सासू मां को घर के सब से ऊपर वाले कमरे में रहने के लिए बाध्य भी कर दिया ताकि वह उन्हें बार बार आवाज दे कर परेशान ना कर सके और ना ही उन तक पहुंच सके| अंजना देवी ने जानबूझ कर अपनी सासू मां का कमरा आलीशान, सुसज्जित एवं सर्व-सुविधायुक्त बनवाया ताकि दुनिया वालों की दृष्टि में वह सुशील व संस्कारी बहू बनी रही| उन्हें कहां मालूम था कि उनका कर्मफल एक दिन उन्हें ही इस कमरे में खींच लाएगा|

आज पूरा एक महीना बीत चुका था अंजना देवी को इस कमरे में लेकिन ना तो उनसे मिलने उनका बेटा यश आया था, ना बहू और ना ही पोता| अंजना देवी को इस बात का एहसास होने लगा था कि एक बुजुर्ग व्यक्ति को केवल आलीशान, सुसज्जित कमरा ही नहीं बल्कि परिवार के सदस्यों का साथ भी चाहिए होता है| घर के बुजुर्ग हमसे कुछ नहीं बस थोड़ा सा समय चाहते हैं| वह चाहते हैं हम कुछ देर उनके पास बैठें, उनसे बातें करें और वे हमसे अपना अनुभव साझा करें| वृद्धावस्था कोई बीमारी नहीं है|

अपनी सासू मां के साथ किए बर्ताव पर अंजना देवी आत्ममंथन करती हुई पश्चाताप से भर गई थी| स्वयं को अपनी इस अवस्था के लिए दोषी मान रही थी क्योंकि उन्होंने ही वृद्धावस्था को बीमारी और वृद्ध को परिवार से अलग-थलग रखने की व्यवस्था प्रारंभ की थी| यह सब विचार करते हुए अंजना देवी की पलकें नम हो गई और अश्रुधार उनके गालों को भिगोने लगे| तभी किसी के आने की आहट हुई, झिलमिलाई आंखों से जब उन्होंने देखा सामने उनका बेटा यश, बहू और पोता सभी खड़े थे, यह देख अंजना देवी फफक फफक कर रो पड़ी| तभी उनका पोता उनके आंसू पोंछते हुए बोला -

"दादी हम आपको लेने आए हैं, आप हमारे साथ चलिए, अब आप इस ऊपर वाले कमरे में नहीं हम सभी के साथ नीचे रहेंगी|"

यह सुन अंजना देवी आश्चर्य से अपने बेटे और बहू की ओर देखने लगी| तभी यश अपनी मां की दोनों हथेलियों को अपनी हथेलियों में लेते हुए बोला-

" हां मां आप हम सभी के साथ नीचे रहेंगी हम सब आपसे बहुत प्यार करते हैं| मैं तो बस आपको यह एहसास दिलाना चाहता था कि आपने दादी के साथ जो किया वह ग़लत था| हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि हम जो उदाहरण अपने बच्चों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं हमारे बच्चे उसी का अनुसरण करते हैं|"

अपने बेटे से यह सब सुन अंजना देवी ने बेटे को गले से लगा लिया और सभी की आंखें नम हो गई|

प्रेमलता यदु
"हर्षांचल" 46 ज़ीनत विहार फेस-2
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