देह -देह का परिचय होना कहलाता है भोग सखे।।
इस परिचय का जीवन कितना देह संग ढल जाता है।
आत्मिक- मिलन चिर -आयु बन सत्य प्रेम कहलाता है।।
त्याग -भूमि पर स्वयं बीज जब उगता निज को खोकर है।
प्रेम -पुष्प की वह सुगंध ही करती सबको विह्वल है।
अन्त: का सौन्दर्य जोड़ती ऐसी कितनी पड़ी कहानी।
क्षय को छोड़ अमरता पाए यही प्रेम की सत्य निशानी।।
अर्णव मिलन नदी उत्कंठा भाषा कुछ कहलाती है।
जलधि त्याग को अभ्र रूप में प्रकृति स्वयं बरसाती है।
प्रेम -परिधि में आदि -अंत का विंदु न कोई होता।
गिरि समुद्र नदियों जंगल का परिपथ यही बतलाता।।
मोती प्रसाद साहू
अल्मोड़ा
उत्तराखण्ड-263601