सुनाने को नहीं बची कहानियां
अक्सर तो सुनता ही रहा
मौन को अस्त्र की तरह इस्तेमाल किया
क्या जिया कैसे जिया
वो सब क्या सोचना
न कुछ गर्व करने लायक न पछतावे की बात
पढ़ लिख लिए
मिला रोजगार
कोल्हू के बैल की तरह जुते रहे
विवाह, बच्चे, परिवार
ओढ़ ली जिम्मेदारी
कुछ समय निकाल पढ़ना- लिखना, सभा- सम्मेलन
और दुनिया बदलने की चिंता
बेहतर समाज
समृद्ध संस्कृति
लोग अपनी अपनी बेहतरी में मशगूल
वैश्वीकरण के संजाल में
धुंधलका बढ़ता रहा
धीरे-धीरे खोता गया वो सब
जो संजोया था बरसों-बरस
मन में उड़ती रही पतंगें
आसमान धुंध से भरा था
फूल खिले थे
दृष्टि धुंधली थी
कैटरेक्ट बढ़ आया था आँखों में
हो रहा था बहुत कुछ देश दुनिया में
सूचनाएं ही सूचनाएं
भूख, सूखा, युद्ध, भूकंप, तूफान
और सुविधाओं का बड़ा जखीरा
आनंद, मनोरंजन, भाँति-भाँति के पकवान
भ्रम और झूठ
टीवी, अखबार, वाट्सएप और यूट्यूब
माईकल जैक्सन की तर्ज़ पर नाचता गोएबल्स
कानों में जमता रहा मैल
बचा था मुँह बोलता कड़वा
याद रखने को है क्या
मस्तिष्क में खून और हवा पहुंचती
ऐलोपैथिक टेबलेट की शक्ल
कभी-कभी कौंधती है एक चिंगारी
युवावस्था में पनपी थी जो मन में
थोड़ी देर के लिए
लौट आता है यौवन
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