Ads Section

नवीनतम

10/recent/ticker-posts

ख़ुशी के रंग



आनन्द परेशान हालत में घर पहुंचता है। घर में पत्नी रश्मि छ: साल की बच्ची पीहू को पढ़ा रही है। कॉल बेल की आवाज़ आते ही पीहू खुशी से बोल उठती है -- 'मम्मी, मम्मी! देखो पापा आ गए।'

रश्मि पीहू से -- 'रुको पीहू। मैं खोलती हूं।' इतना कहकर रश्मि आगे बढ़ती है और घर का दरवाज़ा खोलती है। सामने आनन्द को उदास देख कुछ नहीं बोलती है। आनन्द के हाथ से बैग लेती है।
' तुम हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जाओ। मैं चाय बनाती हूं।" रश्मि बैग रखती है।
"पीहू कहां है रश्मि" आनन्द बोला
"मैं यहां हूं पापा।" पीहू सामने आ खड़ी होती है।
"हाय पीहू। कैसी हो बेबी।" आनन्द गोद ले लेता है।
' ठीक हूं। पापा! कल तो होली है न?" पीहू ने मासूमियत से सवाल किया।
"हां। कल तो होली है।" -- आनन्द ने कहा
"मेरे लिए क्या लाए हो?' पीहू आनन्द की ओर उम्मीद भारी नज़रों से देखती है।
आनन्द तुरंत बोला - ' हां लाया हूं न!'-- जेब से चॉकलेट निकालकर देता है।
पीहू खुश हो कर आनन्द का गाल चूम लेती है। फिर उदास हो गई।
आनन्द ने पूछा--" क्या हुआ बेबी?"
"पापा, कल होली कैसे खेलूंगी। पिचकारी तो लाए नहीं।" ठुनक कर पीहू बोली। आनन्द को जबाब नहीं सूझा। कैसे बताऊं कि इस बार की होली बगैर पिचकारी के खेलनी होगी।
तभी रश्मि चाय नाश्ता लेकर आती है। आनन्द को पीहू के साथ बातचीत करते देख बोली --"आनन्द! तुम अभी तक फ्रेश भी नहीं हुए। फिर पीहू से बोलती है --"पीहू! जाओ अपने कमरे में जाकर खेलो। पापा थके हैं। ठीक है।"
"ओके ममा।" पीहू यह कहते हुए अपने कमरे में चली जाती है।
आनन्द रश्मि से बोल उठा - "अरे रश्मि। ऐसा क्यूँ कर रही हूं। पीहू से क्यूँ जाने को कहा।"
"अच्छा छोड़ो इन बातों को। ऑफिस से आए हो थोड़ा रिलेक्स हो लो। फिर पीहू के साथ जितना मन करे रह लेना। सारी रात पड़ी है। ओके! जाओ फ्रेश हो जाओ। चाय ठंडी हो जाएगी तो मुझे फिर से गरम करना होगा। ओके।"-- रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा।
आनन्द उठकर रश्मि का दोनों हाथों को अपने हाथ में लेकर भावुक होकर -" रश्मि! तुम बहुत अच्छी पत्नी ही नहीं पीहू की प्यारी मम्मी भी हो।" आनन्द हंसते हुए बाथ रूम चला गया।
रश्मि आनन्द के चेहरे पर और दिन के बजाय आज कुछ फर्क देख रही थी। पहले रोज शाम को घर आते ही पूरा घर को सर उठा लिया करता था। आज वो सब कुछ दिखा नहीं। वो इस खामोशी को जानने को उत्सुक हो रही थी।
तभी आनन्द आता है। रश्मि चाय बनाकर बढ़ाती है। आनन्द ब्रेड उठाकर खाने लगता है। रश्मि को सोचते देख आनन्द टोकता है- "ऐ रश्मि। क्या सोचने लगी? ऐनी प्रॉब्लम?"
"प्रॉब्लम मेरा कुछ नहीं। लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हारे अंदर कुछ चल रहा है जिसे तुम छुपाने की कोशिश कर रहे हो।" रश्मि आनन्द के चेहरे को देखकर बोली।
" ऐसा कैसे कह सकती हो।"-- आनन्द चाय पीने लगता है।
" कल होली है। न पकवान का सामान न रंग न गुलाल! सब ठीक-ठाक है न?"--रश्मि संशय मन से बोली।
"रश्मि! रियली एवरी थींग इज ओके। अगर ऐसा कुछ होता तो तुम्हारे साथ शेयर जरूर करता।"--आनन्द ने रश्मि का हाथ पकड़ कर बोला।
"पर शशांक जो कह रहा था कि..." रश्मि बोलते बोलते रूक गई।
क्योंकि आनन्द बीच में ही रश्मि से पूछ बैठा-- " शशांक...? क.. क्य... क्या....क्या कहा शशांक ने।"
"यही कि तुम्हारा जॉब छूट गया।" रश्मि इतना कहकर आनन्द के चेहरे को गौर से देखने लगी।
आनन्द को लगा जैसे किसी ने उसकी चोरी पकड़ ली हो। फिर संभल कर बल्कि हंसते हुए कहा -" शशांक भी न! कभी कोई बात समय देखकर नहीं करता है। मैं उसकी तो ख़बर लेकर रहूंगा। छोड़ूंगा नहीं देखना।" रश्मि कुछ देर चुप रही। आनन्द भी खामोश हो चाय पीने लगा।
थोड़ी देर बाद रश्मि आनन्द से मुस्कुराते हुए बोली -- " मुझे पता है तुम अपनी बीवी और बच्चे का बहुत ख्याल रखते हो। उससे अपनी कोई परेशानी शेयर नहीं करना चाहते हो। क्या तुम नहीं जानते? जो औरत वर्षों से तुम्हारे साथ एक एक पल हर लम्हा गुजारी है वो तुम्हारे चेहरे के अंदर की बात भी पढ़ सकती है। तुम कुछ छुपा रहे हो। क्योंकि शशांक कभी झूठ नहीं बोलता।"
रश्मि नाराज़ हो गई। खाली कप समेट कर किचन में चली जाती है। आनन्द पीछे पीछे जाता है।
रश्मि को सॉरी बोलते हुए -- " सॉरी रश्मि। दरअसल मैं तुम्हें उदास नहीं देखना चाहता रश्मि। सोचा एक दो दिन में दूसरा जॉब ढ़ूंढ लेता। तो बता...ता।" -- बोलते बोलते आनन्द रुक गया। क्योंकि रश्मि के चेहरे पर अब भी नाराजगी थी।
रश्मि नजदीक आकर आनन्द के शर्ट का बटन खोलते हुए बोली -- "कोरोनावायरस ने जिंदगी को असंतुलित कर दिया है, है न आनन्द? वहीं दूसरी तरफ़ हमें आत्मनिर्भर बनने का मौका भी दिया है। जबतक तुम्हें दूसरा जॉब मिल नहीं जाता सोचती हूं अपना फैशन डिजाइनर का काम शुरू कर दूं। शशांक सारा इंतजाम कर देगा।"
"शशांक शशांक शशांक। ये हमारी मदद नहीं मज़ाक उड़ाने की कोशिश कर रहा है।" आनन्द पीछे हटते हुए झुंझलाए में कहा।
उसी समय शशांक आता है। आनन्द की बात सुन लेता है।
बोला-- " वाह! बहुत बढ़िया आनन्द। जिस इंसान ने मुझे अपना दोस्त से ज्यादा एक भाई मानकर हमेशा मेरी मदद की। जिंदगी को मज़ाक बनने से बचा लिया। मैं उसकी मुसीबत का मज़ाक उड़ाऊंगा। तुमने मुझे अच्छा सिला दिया है आनन्द।" शशांक जाने लगता है।
तभी आनन्द पीछे से आवाज़ देता है -"रुक जा शशांक मेरे भाई। क्या करूं? बराबर जिसकी मदद करता रहा आज....!"
"भाई भाई को मदद करे इसमें स्वाभिमान नहीं घटता है आनन्द बल्कि बढ़ता है।" शशांक आनन्द से बोला।
रश्मि खुशी से भर कर बोली -" तुम दोनों की दोस्ती को किसी की नज़र न लगे।।"
शशांक चुटकी लेते हुए कहा -" भाभी। बस आप अपनी आंखों का काजल हम दोनों के चेहरे पर लगा दिया करो सब सही रहेगा।"
रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा -" तुम न कभी कभी बहुत ज्यादा बोल जाते हो।"
शशांक आनन्द से बोला -" कुछ ग़लत तो नहीं बोला मैंने!"
सभी हंसने लगे। पीहू भी अपने कमरे से बाहर निकल आई। शशांक ने पीहू को देख 'हाय बेबी' कहा। पीहू का मुंह लटका देख शशांक ने पूछा--" क्या हुआ बेबी को? किसी ने डांट दिया क्या?"
" पापा ने पिचकारी लाकर नहीं दिया। कल होली कैसे खेलूंगी।"-- पीहू ने शिकायत की।
"बस इतनी सी बात।"-- शशांक कैरी बैग से पिचकारी निकालते हुए --"ये रहा तुम्हारा पिचकारी। कल होली इसी से खेलना।"
पीहू पिचकारी लेकर खुश होकर 'होली खेलूंगी रंग डालूंगी।' कहते हुए अपने कमरे में चली गई। पीहू को खुश देख सभी मुस्कुरा रहे थे।
आनन्द ने शशांक से पूछा -" थैंक्स शशांक। पीहू की खुशी के लिए तुमने जो किया न कोई सगा भी नहीं करता।"
शशांक ने आनन्द से कहा--"एक दूसरे के दुःख में जो साथ खड़ा हो वही पक्का रिश्ता होता है। पीहू की खुशी जितना तुम्हारे लिए खास है मेरे लिए भी उतना ही खास है। समझे।"
आंनद ने शशांक से कहा --"शशांक! वो रश्मि कह रही थी कि तुम उसको आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रहे हो।"
"अरे। सिर्फ मैं नहीं तुम भी रश्मि भाभी की मदद कर रहे हो। देखो मैंने बैंक मैनेजर से एश्योर करवा लिया है। वो लोन सेंक्शन कर देगा। तुम सूरत से प्लांट मंगवाओगे। अपने इस घर के पीछे जो जमीन खाली पड़ी है वहीं पर प्लांट एस्टेब्लिश करते हैं। सूरत से कपड़े आर्डर पर मंगवा लेंगे। भाभी डिजाइन कर देगी और ..."शशांक रुक जाता है।
आनन्द बोल पड़ता है -" वो सब तो ठीक है शशांक। सिलाई करने वाले कहां से आएगा।"
" अरे हां याद आया। कोरोना वायरस के आतंक से बहुत से कारीगर सूरत से यहां आया हुआ है। वो सब बेकार हो गए हैं उन्हें यहां काम दे देंगे। उन्हें रोजगार मिल जाएगा और हमें कामगार।"
फिर तो कल से काम शुरू करते हैं। रश्मि खुश नज़र आ रही थी। फैशन डिजाइनर की पढ़ाई आज काम में आने वाली है। आनन्द को भी मदद मिलेगी और पीहू को एक अच्छी जिंदगी दे सकेंगी।
" क्या सोच रही हो? इतना बड़ा फैसला ले लिया हम लोगों ने। और तुम चुपचाप खड़ी हो। शशांक को चाय नहीं पिलाओगी?" आनन्द ने रश्मि से कहा। रश्मि चौंक कर -" क्यों नहीं। अभी लाई।"
" अरे भाभी। अभी नहीं। देर हो रही है। मेरे घर में तो पता भी नहीं कि मेरा भी जॉब चला गया है।"-- शशांक बोल कर हंस पड़ा।
"क्योंकि मैं शशांक नहीं हूं वरना पता तो चल ही गया होता।" आनन्द शशांक से बोला। शशांक हंसते हुए प्रस्थान कर जाता है।
वक्त का पहिया तेजी से घुमने लगता है। होली के रंग व गुलाल के साथ भविष्य के ताने-बाने बुनते रहे।
कुछ ही महीनों में "पीहू फैशन गारमेंट्स" स्टेबल हो जाता है। रश्मि का किया डिजाइन की काफी चर्चा होने लगी। मांग बढ़ती गई और काम भी बढ़ता गया। आनन्द, शशांक और रश्मि की मेहनत रंग लाती है। स्वरोजगार शुरू कर कइयों को रोजगार दिया जाने लगा। आसपास के लोगों में उत्साह भर गया। आत्मनिर्भरता का सबब ने सबको आत्मनिर्भर बना दिया।


महेश 'अनजाना'
जमालपुर, बिहार