अन्जाम

अरुणिता
द्वारा -
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आंगन में प्रवेश करते ही मनोहर चिल्लाते हुए बोले-"अपने लाड़ले को समझाओ! नहीं तो एक दिन लेने के देने पड़ जाएंगे।

हम साधारण लोग हैं और साधारण ढंग से ही रहना चाहिए।"

मनोहर जी गुस्से से भरकर पत्नी शिखा को देखते रहे-

"सब तुम्हारे लाड़, प्यार का नतीजा है जो इतना लापरवाह सा हो गया है। दिन भर घुमता-फिरता रहता है।

उन सभी का क्या,मामला पैसे देकर निबटा लेगें। मैं कहां से लाऊँगा..?"

"अरे! अब बच्चा अपने दोस्तों के साथ ही तो घुमे-फिरेगा न। क्या कहूँ उसे! घर में ही बैठा रह।'

"तुम्हें मालूम भी है कुछ! आजकल इस उम्र के बच्चे क्या-क्या कर रहे हैं इतने सयाने हो गए हैं कि कुछ टेर नहीं लगने देते।"

"क्या हो गया, कुछ साफ-साफ कहेंगे तो न मैं समझूँ। जवान बच्चा है उसे हमेशा कुछ-कुछ कहना क्या अच्छा लगता है..?"

जिन लड़कों के साथ रहता है उनके चाल-चलन बिल्कुल अच्छे नहीं हैं। कल मैंने अपनी आंखों से देखा -कैसे अपनी हाथों में सूई चुभो रहा था।

"तुम तो बेकार में ही शक करते हो। मेरा बेटा ऐसा नहीं है। जवान है, समझदार भी है। समझा दूँगी उसे। तुम हमेशा उसके पीछे मत पड़े रहो।"

"ठीक है!फिर भुगतना अंजाम। जवान है तभी तो चिंता होती है। मैं नहीं चाहता कि उसकी जवानी सलाखों के पीछे कटे।



सपना चन्द्रा
कहलगांव, भागलपुर 
बिहार

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