Ads Section

नवीनतम

10/recent/ticker-posts

कन्या का मान



कुछ दिन पहले मैं टैक्सी के द्वारा दिल्ली से बाहर जा रही थी। मैंने आने-जाने की टैक्सी की थी। टैक्सी में ड्राइवर ने राधा रानी के भजन लगा दिए और मुझसे स्वयं ही बात करने लगा कि “मैं राधा रानी का भक्त हूँ। आप को कोई एतराज़ तो नहीं|” मैंने कहा –“नहीं… लेकिन आवाज़ थोड़ी धीमी रखना ।”

“मैडम ..आप वहाँ कितनी देर रूकेंगी ?”ड्राइवर ने पूछा। मैंने हैरान हो कर कहा “आप क्यों पूछ रहे हो”? उसने नम्रता से जवाब दिया कि” मेरी बेटी रहती है जितनी देर आप काम करेगी मैं उससे मिल आऊँगा।” मैंने कहा- “ठीक है मिल आना”।

ड्राइवर समय पर वापस जाने के लिए आ गया। मैंने औपचारिक तौर पर पूछ लिया कि बेटी से मुलाक़ात हो गई । उसने मुस्कुराते हुए कहा- “जी मैडम” और गाड़ी धीरे धीरे रफ़्तार पकड़ने लगी। मैंने फिर पूछा “ससुराल है क्या बेटी का”? उसने कहा “जी नहीं वह तो अभी चार महीने की है “। यह सुनकर मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी। मैंने हैरानी से पूछा “तो क्या आप का घर है यहाँ पर ?” जी नहीं …. । उसने धीरे से जवाब दिया। मुझे यूँ उलझा हुआ देख कर वह बोला कि मैं आप को पूरी बात बताता हूँ । मैं भी सुनने के लिए तैयार हो गई।

मेरी उम्र 45 साल है। मेरे दो बेटे हैं। मुझे अक्सर बात-बात में गाली देने की आदत है जबकि मुझे यह ख़ुद भी पसंद नहीं और ना ही मेरी पत्नी को । मैंने कई बार स्वयं को सुधारने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी। मेरे कुछ मित्र है जिनके घर जब मैं जाता हूँ तो वे मुझे पहले ही आगाह कर देते हैं कि सोच कर बोलना,घर में बहन,बेटी है। फिर मेरी पत्नी और मैंने फ़ैसला किया कि हमें एक बेटी गोद लेनी चाहिए। घर में कन्या होगी तो सोच समझ कर बोला जाएगा। जल्दी ही हमने अपनी रिश्तेदारी में से एक 13-14 साल की लड़की को गोद ले लिया और वास्तव में ही मेरी भाषा में सुधार होने लगा। यह सोच कर कि घर में बेटी है,मैं संभल कर बोलने लगा। घर में बातचीत में मर्यादा का ध्यान रखा जाने लगा । अभी कुछ महीने पहले ही उसकी शादी हो गई है और मुझे लगता है कि मैं फिर से अपनी पहले वाली आदतों पर आ रहा हूँ शायद वह डर ख़त्म हो गया है । इससे पहले कि यह आदत स्वभाव बन जाए हमने एक और कन्या को गोद लेने का फ़ैसला किया और जल्दी ही हमें कामयाबी भी मिल गई। हमारी रिश्तेदारी में ही किसी के पास पहले दो बेटियाँ है और अब उनके यहाँ एक साथ दो बच्चों का जन्म हुआ है एक लड़की और एक लड़का। लड़की को हमने गोद लेने का निर्णय लिया है और नवरात्रि पर लेकर आएँगे। बस उससे ही मिलने गया था”।
पूरी बात सुनने के बाद मैंने कहा” अच्छा फ़ैसला है लेकिन क्या यह ज़रूरी है कि अपनी बुरी आदतों को सुधारने के लिए बेटी का सहारा लिया जाए|”

थोड़ी ख़ामोशी के बाद वह बोला” जी नहीं…बस मेरा अपना ऐसा मानना है …. लेकिन एक बात मैं ज़रूर कहूँगा कि घर में एक बेटी ज़रूर होनी चाहिए। क्योंकि वह बेटी नहीं हमारी दूसरी माँ बन जाती है। किसी और की मानें या ना माने बेटी को आप नाराज़ नहीं कर सकते।”
उसकी बातों के साथ सफ़र कैसे कट गया पता ही नहीं चला। मैंने उसे 200/- रुपये ज़्यादा देते हुए कहा कि “मेरी तरफ़ से अपनी बेटी को कोई उपहार ले देना। मुझे आप की सोच पर गर्व है और मेरी शुभकामनाएँ है कि आपके में घर यूँ ही साक्षात राधा रानी बनी रहे।”


आशा भाटिया
जनकपुरी, नयी दिल्ली