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सम्मान का जीवन



सेठ सीताराम दास के घर किन्नर झूम-झूम कर नाचते हुए उनसे बख्शीश की माँग कर रहे थे। कल रात बड़ी पार्टी हुई थी,उनके बेटे-बहु को पुत्री प्राप्त होने की खुशी में। धूमधाम से उन्होंने अपनी पौत्री का जन्मोत्सव मनाया था, जिसे सूँघते आज किन्नरों का दल आ पहुँचा नवजात को आशीर्वाद देने के लिए ।

बेटे सुभाष ने बच्चे को बाहर बुलवाकर उसे आशीर्वाद दिलवाया और किन्नरों को बैठाकर मिठाइयों संग पकवान भी खिलाए। फिर भी किन्नर संतुष्ट नहीं थे, उन्हें तो बख्शीश के रूप में एक मोटी धनराशि चाहिए थी।

सभी किन्नर लटके झटके दिखाते हुए गाने के साथ नृत्य करने लगे और अपना हिस्सा भी माँगने लगे नवजात को आशीर्वाद देने के एवज में ।

सुभाष – "तुमने आशीर्वाद दिया हमारे बच्चे को, हमने तुम्हारा मुँह मीठा किया। यदि तुम समय से आते अथवा अभी भी पूर्व सूचना देकर आते तो विधिवत तुम्हें पार्टी देते। लेकिन मैं भिक्षा नहीं देता किसी को, तुम्हें भी नहीं दे सकता।

किन्नरों का सरदार क्रोधित होकर सुभाष के कपड़ों को खोलने का प्रयास करने लगा। वह अश्लील बातें भी कर रहा था, जिसका सार था –

"हम तो उभयलिंगी हैं। तुम्हारे घर बेटा हुआ है, सबको तुमने इतनी बड़ी पार्टी दी है, इतना खर्चा किया है, हमें थोड़ा सा देने में तुम इस तरह नखरे दिखा रहे हो"?

सुभाष – "पहले तो तुम यह गलतफहमी अपने दिल से निकाल दो हमारे घर बेटा हुआ है। हमारे घर लक्ष्मी आई है, लक्ष्मी का स्वागत हमने धूमधाम से प्रसन्नता पूर्वक किया है।"

सरदार सुनकर आश्चर्यचकित था – " क्या बेटी का स्वागत ऐसे किया जाता है?बेटी होने के उपलक्ष में भी इतनी शानदार पार्टी दी जाती है?"

फिर उसने अपने पूरे दल को वहाँ से प्रस्थान करने का निर्देश दे दिया। अब सुभाष ने उन सभी को रोका –

"सुनो तुम ऐसा क्यों कह रहे हो बेटी की खुशी नहीं मनाई जाती! बेटी नहीं हो तो बेटे कहाँ से होंगे! और तुम अपने को सिर्फ भीख माँगने के लायक क्यों समझते हो? देखो उन अपाहिजों को जिनके हाथ पैर नहीं होते,आँखें नहीं होतीं वे भी काम करते हैं। तुम्हें तो भगवान ने पूर्ण मानव बनाया है। उभयलिंगी कहकर अपने को कोसते क्यों हो?"

सरदार –" साहब हम बहुत पढ़े लिखे नहीं हैं और हमें कोई काम भी नहीं मिलता है, तब हम और कुछ कर ही क्या सकते हैं!"

सुभाष – "तुम काम करना चाहो तो मेरी फैक्ट्री में मैं तुम्हारे सभी बालिग सदस्य को काम दे सकता हूँ और बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था भी मैं कर दे सकता हूँ । तुम्हें पारिश्रमिक के अतिरिक्त सभी कर्मचारियों को मिलने वाला बोनस और सभी सुविधाएं मिलेंगी। मेरी शर्त यही रहेगी जैसे मेरे सभी कर्मचारी काम करते हैं वैसे ही लगन से तुम्हें भी काम करना होगा । बोलो तैयार हो !"

सरदार –" साहब हमारा भी सम्मान का जीवन हो सकता है, हमने तो सोचा ही नहीं था। अब तक जहां गए वहां दुत्कार ही मिली, काश हमारे जैसे सभी किन्नर को आप जैसे लोग मिल जाएँ। "

निर्मला कर्ण 
 राँची, झारखंड