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धरती मात समान



प्रत्येक शाम को हम कुछ अवकाश प्राप्त (भले ही नौकरी से हो या व्यवसाय से) दोस्त पार्क में बैठ राजनीति वाले विषय से हट किसी भी प्रकार के अन्य विषय पर आपस में चर्चा कर लेते हैं। इसी क्रम में एक शाम हम कुछ दोस्त पार्क में बैठ गपशप कर रहे थे। इसी बीच हम बैठे लोगों में से ही किसी ने मजाकिया अंदाज में ऐसे ही पूछ लिया 'गर धरा न होती' ।

इतना सुनने के बाद वहाँ उपस्थित सभी को मैंने समझाते हुये कहा - चूँकि हम धरा को माता मानते हैं इसलिये ' अगर पृथ्वी नहीं होती तो' प्रश्न ही बेईमानी वाला माना जायेगा क्योंकि यदि धरती न होती तो हम होते ही नहीं फिर यह सब बातें उठती ही नहीं ।

इसलिये आज हम जो कुछ भी हैं वह एक उस माता की कृपा है जिसने अनेकों कष्ट सहन कर हमें जन्म दिया और दूसरी यह धरती माता है जो हमें बाकी सब कुछ अर्थात सभी कुछ दे रही है जबकि हम इस धरती माता के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार कर रहे हैं अर्थात सभी मिलकर ऐसा दोहन कर रहे हैं जो किसी भी हालात में शोभनीय नहीं माना जा सकता।

इसलिये आवश्यकता है यह सोचने की कि हमारी क्या हालत होती यदि ' अगर पृथ्वी नहीं होती तो'। इसलिये अभी भी समय है कि हम सभी वरिष्ठ, अन्यों को छोड़िये, अपनी आवश्यकताओं पर अंकुश लगा के रखें ताकि यह धरा हरी भरी रहे और यह स्वतः जो हमें दे उसी पर सन्तोष करना सीखें। इसके साथ उपरोक्त तथ्य को हम ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करें, सभी को प्रेरित भी करें ताकि अपनी धरती माता के प्रति हम सब अपना दायित्व समझें ही नहीं बल्कि उन दायित्वों की स्वयं तो पालना करें ही औरों से भी करवायें।

ध्यान रखें सामूहिक प्रयास का नतीजा हमेशा न केवल सुखदायी होता है बल्कि लम्बे समय तक प्रभावी भी रहता है।

गोवर्धन दास बिन्नाणी 'राजा बाबू'

बीकानेर / मुम्बई