उसके छठवें जन्मदिन पर
उसके पिता जी ने
शहर के नामी-गिरामी
अंग्रेजी स्कूल में
पहली कक्षा में
उसका नामकरण कराया.
उसी दिन गांव के
एक बड़े प्लॉट में
पच्चीस-तीस पेड़ों के
अच्छे-अच्छे नस्लों के
आम का बाग भी लगाया.
उसकी मां हर प्रकार से
देखभाल करती
पढ़ाई-लिखाई के
सारे मानदंडों को अपनाती.
ठीक वैसे ही जैसे
आम के बाग़ की देखरेख
पिता जी करते
समय पर सिंचाई,
निराई-गुड़ाई तथा
जैविक उर्वरक डालते.
माता-पिता
दोनों मिलकर
साकार करने हेतु
जीवन के अनमोल सपनों को
त्याग दिया सारी ऊर्जा,
धन,समय और अपनों को.
परिवार के प्रति त्याग
जीवन मंत्र की तपस्या
में वर्षों लग गए
युग बीत गए
दोनों युवा से अधेड़ हुए
अब वह युवा हो गया
बाग़ के पौधे अब पेड़ हुए.
वह अध्ययन पूरा कर
भारतीय प्रशासनिक सेवा
में आया
उसकी जीवन गति और
नैसर्गिक प्रक्रियाएं
जन-जन को भाया.
उधर गांव का बाग
भी रंग दिखाई
पिता की मिहनत
भी रंग लाई
आम के बाग़ में
व्यापारियों के ट्रक लगने लगे
आस पास के कामगारों के
भाग्य जगने लगे.
उसके माता-पिता
एक अच्छे परिवार के
सही अभिभावक हुए
सदाशयी पालक हुए
प्राकृत बागवान हुए.
उसके मां-पिताजी
परत-दर-परत बदलते
जिंदगी के आयामों
और उनके
उलझते-सुलझते क्रमों
का अवलोकन कर
रोमांच से भर जाते हैं,
वो मन-ही-मन ईश्वर
का आभार गाते हैं.
ललन प्रसाद सिंह
वसंत कुंज, नई दिल्ली-70