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कारगिल के एकलव्य


ब्रिगेडियर अमरिंदर सिंह कसाना, वीर चक्र
   












        1999 का युद्ध (ऑपरेशन विजय) आजादी के 52 साल बाद लड़ा गया था। भारत-पाक के बीच संघर्ष की उत्पत्ति 1947 में पाकिस्तान द्वारा धोखे से किए गए आक्रमण से शुरू हुई । भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की जड़ पाकिस्तान द्वारा जम्मू और कश्मीर पर कब्ज़ा करने के कुत्सित प्रयास हैं। आपरेशन विजय की पटकथा पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद लिखी गई थी । पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना द्वारा सर्दियों में खाली की गई अग्रिम चौकियों पर गुप्त रूप से कब्जा कर लिया। पाकिस्तान कि इस नापाक हरकत का पता भारतीय सेना को 3 मई 1999 को चला। 26 मई को भारतीय वायु सेना द्वारा पहली बार आसमान से जमीन पर हमला किया गया, उसके बाद भारतीय सेना द्वारा घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन विजय चलाया गया।

    ब्रिगेडियर (तब मेजर) अमरिंदर सिंह कसाना की यूनिट 41 फील्ड रेजिमेंट को "ऑपरेशन विजय" के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए द्रास सेक्टर में तैनात किया गया था । तोलोलिंग चोटी पर हमले के समय वह एक बैट्री के बैट्री कमांडर थे। उन्होंने चोटी 5140 पर कब्जा करने तक बैट्री कमांडर के रूप में स्वेच्छा से बने रहना चाहा । उन्होंने 2 राजपूताना राइफल्स, 18 ग्रेनेडियर्स और 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स के साथ लगातार चार हमलों में भाग लिया और तोलोलिंग, हंप, रॉकी और प्वाइंट 5140 पर कब्जा करने में इन यूनिटों के साथ अहम भूमिका निभाई ।

    इन ऑपरेशनों के दौरान मेजर कसाना ने असाधारण वीरता और कर्तव्य के प्रति समर्पण का प्रदर्शन किया और बहुत प्रभावी ढंग से तोपखाने के फायर का निर्देशन किया। जिससे भारी संख्या में दुश्मन हताहत हुए और दुश्मन अपने उद्देश्यों में असफल हुआ। हमारी पैदल सेना को आगे बढ़ने में बहुत मदद मिली । पाकिस्तानी सेना ने कब्ज़ा की हुई चौकियों के सामने माइन फील्डस लगा रखी थी, जिसके कारण हमारी पैदल सेना को आगे बढ़ने में कठिनाई हो रही थी। इस अवरोध को दूर करने के लिए मेजर कसाना आगे आए । अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए मेजर कसाना ने 12-13 जून 1999 की रात को तोलोलिंग चोटी पर माइन फील्डस को नष्ट किया। इससे हमारी पैदल सेना के जवानों के जीवन कि रक्षा हुई और वह निडर होकर दुश्मन पर हमला करने के लिए आगे बढ़़ सके ।

    ब्रिगेडियर अमरिंदर सिंह कसाना के असाधारण साहस ने पैदल सेना के युध्द में जाने वाले सैनिकों के मनोबल को बढ़ाया। तोपखाने की सटीक और प्रभावी फायरिंग से दुश्मन के हौसले को पस्त करते हुए और 12-13 जून, 13-14 जून, 16-17 जून तथा 19 और 20 जून की रात को तोलोलिंग, हंप, रॉकी और प्वाइंट 5140 पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उनके इस सराहनीय योगदान के लिए उन्हें 12 जून 1999 को वीर चक्र प्रदान किया गया। वर्ष 2014 में वे पदोन्नत होकर ब्रिगडियर बने।

    ब्रिगेडियर अमरिंदर सिंह कसाना का जन्म 31 मार्च 1968 को गांव रिस्तल जनपद गाजियाबाद में श्रीमती चंद्रावती और श्री बलजीत सिंह के यहां हुआ था। इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा सी जे एम हैम्पटन कोर्ट, सेंट जार्जिस तथा उच्च शिक्षा सेंट जान्स आगरा से पूरी की थी। इन्होंने 10 जून 1989 को भारतीय सेना में कमीशन लिया था और तोपखाना की 41 फील्ड रेजिमेंट में तैनात हुए। ब्रिगेडियर कसाना एक सैन्य अधिकारी के साथ साथ शतरंज के एक अच्छे खिलाड़ी, व्यंग कार्टूनिस्ट, जिमनास्ट व धावक भी थे।

    ब्रिगेडियर कसाना का विवाह वर्ष 1995 में सेना में कार्यरत हरियाणा की पहली महिला सैन्य अधिकारी कैप्टन इंदू बोकन से हुई थी। इनके दो पुत्र अक्षत तथा देवांश हैं। कैप्टन इंदू बोकन वर्तमान समय में गुरुग्राम में जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर पदस्थ हैं।
        
    ब्रिगेडियर अमरिंदर सिंह कसाना ने ब्रिगेडियर बनने के बाद अपनी सेवाएं राजस्थान में दीं। इसके पश्चात इनकी पोस्टिंग श्रीनगर में हो गयी। फिर वर्ष 2020 में अरुणाचल प्रदेश में नेशनल कैडेट कोर (एन सी सी) के उप महानिदेशक (डीडीजी) के रूप में तैनात हुए। 27 अक्टूबर 2021 को वह आपरेशन राइनो में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गये।


आपरेशन विजय में एकलव्य की भूमिका निभाने वाले ब्रिगेडियर अमरिंदर सिंह कसाना की सटीक फायरिंग की गूंज आज भी भारतीय तोपखाने में सुनाई देती है, तोपखाने के इस एकलव्य के कारण ही कारगिल की गगनचुंबी पहाड़ियों पर भीषण फायरिंग को अंजाम देकर पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़ी गयी लेकिन इस वीर के वीरता और बलिदान को याद करने के लिए अब तक कोई भी कदम नहीं उठाया गया है। स्थानीय प्रशासन भी अपनी माटी के इस लाल की वीरता के हाल से अपरिचित है। सरकार और स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि ऐसे बीर बलिदानी सैनिकों के नाम पर किसी स्कूल, कालेज या बलिदानी सैनिकों के गांव को जाने वाली सड़क का नामकरण कर दें ताकि देश के भविष्य उनसे प्रेरणा लेकर देश की रक्षा के लिए आगे बढ़े।



हरी राम यादव

सूबेदार मेजर (से०नि०)

लखनऊ, उत्तर प्रदेश