हमारा दयालु ह्रदय पिघल गया और हमने हीटर को बाहर की हवा दिखा दी। कुछ ही देर बाद हीटर को बाहर देखकर, बेटा बोला मोम इतनी गर्मी में हीटर? मैं उसे अपने और हीटर के बीच की व्यक्तिगत वार्तालाप को नहीं बताना चाहती थी और मैंने कहा बेटा अलमारी में जगह नहीं थी इसलिए बाहर रख दिया है।
थोड़ी देर बाद कामवाली बाई आई बोली ,दीदी इस मौसम में हीटर ? अरे बाबा इसे तो देखते ही पसीने आ रहे हैं। हमने हीटर की पीड़ा को समझते हुए उसे भी कह दिया कि अलमारी में जगह नहीं है,अब ये बाहर ही रहेगा।
शाम को पड़ोस की बिटिया मुझसे कुछ पढ़ाई संबंधी सवाल पूछने आई। हीटर देखते ही चौंककर बोली इस मौसम में हीटर? इसको तो देखते ही गर्मी लग रही।अब तो हमारी सहन शक्ति भी जवाब दे गई। भला हीटर को हवा देने के लिए हम अपने दिमाग़ की ऊर्जा क्यूँ खर्च करें। माना कि दयालु हैं हम , लेकिन इतने भी परमार्थी नहीं।
सबके सवालों ने हमारे अंदर संशय पैदा कर दिया कि कहीं लोग हमको ही सटकी हुई न समझ लें। हम कितने ही परमार्थी क्यों न हों लेकिन जब स्वाभिमान या कोई भी स्वार्थ दाँव पर लगा हो तो परमार्थ दरकिनार हो जाता है ।ऐसा ही हमारे साथ हुआ। हमने तुरंत हीटर को अलमारी की शरण देनी चाही। हीटर थोड़ा गिड़गिड़ाया भी ,कि मुझे बाहर ही अच्छा लग रहा है मुझपर रहम करो ।मैं भी तो सर्दी में तुम्हारी सेवा करता हूँ …लेकिन हमने अविलंब उसे अलमारी में ही रखना उचित समझा, साथ ही सोचा ज़्यादा भावुकता भी तकलीफ़देह ही होती है, इसलिए कभी कभी दिमाग़ को ही सर्वोपरि मानना चाहिए।
आख़िर ये तो सृष्टि का नियम है काज परे कछु और है ,काज सरे कछु और.. रहीमन भवरी के भये नदी सिरावत मोर.. तो हमने अपने मन को सांत्वना देते हुए हीटर को यथा स्थान रख दिया , साथ ही सोचा की आख़िर हम भी इंसान हैं हीटर से सर्दी में ताप लिया तो क्या हुआ , अलमारी में रहना तो उसकी नियति है।
रश्मि वैभव गर्ग
कोटा, राजस्थान