हारकर न हो तू कभी उदास,
कर पुनः अथक प्रयास!
ये जंग आख़िरी जंग नहीं,
जीवन के हर मोड़ पर...
आते नित नए जंग है!
रख हौसला, मत भूल
तेरे अपने भी तेरे संग है!
तू विशिष्ट है, तू है ख़ास!
हारकर न हो तू कभी उदास,
कर पुनः अथक प्रयास!
गिरकर फिर से है तुम्हें सँभलना,
कठिन डगर पर सीख ले चलना!
दुःख के हवन कुण्ड से,
सुख का प्रादुर्भाव अवश्यंभावी है!
हार को भी कर सहज स्वीकार,
कम न हो कभी चेहरे की उजास!
हारकर न हो तू कभी उदास,
कर पुनः अथक प्रयास!
तू लौह नहीं जिसमें लग जाए जंग,
स्वर्ण तपकर ही बनता है कुंदन!
मेहनत की तपिश में निखरकर,
तू भी चमकेगा एक दिन...
मन में रख बस इतना विश्वास!
तू है विशिष्ट, तू है ख़ास!
अनिता सिंह
देवघर, झारखण्ड