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ग़ज़ल



ख़ुशी को आज़माना आ गया है।
हमें हँसना -रुलाना आ गया है।

क़िताबों में पढ़ा है या सुना है,
सलीका वो निभाना आ गया है।

दुआओं से मिलेगी जीत अक़्सर
भरोसा अब जताना आ गया है।

शिक़ायत दूर करले आईना अब,
हमें चहरा छुपाना आ गया है।

हवाएँ ले चलेगी अब घटा को,
समुन्दर को चिढ़ाना आ गया है।

जगी आँखें ,उड़ी नींदे हैं फिर भी,
हमें सपने सजाना आ गया है।

नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार, मध्यप्रदेश
पिन-454441