अग्निपथ पर पथिक

अरुणिता
द्वारा -
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सुलगते हूए अंगार रास्तों पर,

कदम-कदम फटते ज्वालामुखी।

शूल-सी तीक्ष्ण शिलाएँ पथ में,

तपती आग-सी, पैरों तले जमीं।



बरसते है पैने बाण आसमां से,

हवाएँ बहती, आग-सी सुलगती।

चोट पर चोट का अति-प्रहार,

पाषाण-सा, वज्र प्रहार करती।



परीक्षाओं के जंजाल से होकर,

जीवन का हर रास्ता निकलता।

ललकारती चुनौतियों से टकरा,

अग्निपथ से जीवनपथ गुजरता।



धूल है जो लड़ा नहीं, भिड़ा नहीं,

धधकती ज्वाला जिसमें ना पले।

कहाँ प्राण है; जो पथ पे ना चला,

है मनुष्य, तो अग्निपथ को चले।



बिजलियाँ बरस रही रास्तों पर,

तूफ़ान, तुझको रास्तों में रोकता।



तू बढ़ा कदम, खुद में अग्नि जला,

अग्निपथ पर पथिक पथ है देखता।



अनिल कुमार केसरी

राजस्थान सरकार अधीनस्थ सेवा में वरिष्ठ अध्यापक 'हिंदी'

ग्राम व पोस्ट-देई, तहसील नैनवा

जिला बूंदी, राजस्थान

पिनकोड-323802

 

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