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आज़ाद परिन्दा

 


ज़ाद परिन्दा हूँ मैं,मुझे तो आसमान तक जाना है,

ना रखो चारदीवारी में मुझे कैद,मुझे तो उड़ जाना है..



समाज को कोई हक नहीं मेरी आजादी छीनने का,

मुझे पूरा हक है जीवन अपना आजादी से जीने का..



मुझे मेरे सपनों के संग रहने दो, मेरा भी सपना है,

आज़ाद परिंदा हूँ मैं,मुझे तो आसमान तक जाना है..



दुख के बादल घिरे हैं पर उम्मीद का सूरज चमक रहा,

घायल हैं पंख मेरे तो क्या?उड़ान भरने को कह रहा है..



माना संघर्ष बड़ा है और बाधायें बहुत हैं मेरे जीवन में,

किन्तु जिन्दा रखी हूँ देखो जीतने की आशाएं मन में..



अपने लक्ष्य पर चल पड़ी हूँ,मुझे मंजिल पाना है,

आज़ाद परिंदा हूँ मैं,मुझे तो आसमान तक जाना है..



आभा सिंह

वाराणसी