कब तक तोड़ोगे
स्त्री को
जिससे टूटकर तुम पैदा हुए हो,
झांक अपने अंदर
आज तूम जिस अस्तित्व पर
इतराते हो
जिस पौरुष को
दिखलाते हो
वह किसी और की नहीं
उसी स्त्री की देन है
जिसके बदन को
तुम्हारी कामुक नंगी निगाहें
तौलने के फिराक में रहती हैं
रात - दिन
कनक किशोर
राँची, झारखंड