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नाना का गाँव



मनोहर बीसों वर्ष बाद आज अपने पैतृक गांव आया था।बचपन की विसंगतियों के कारण वह अपने नाना के घर चला गया था।वहीं पढ़ा लिखा और सरकारी नौकरी में चला गया।गांव में कुछ परिवार के लोग आज भी रहते हैं।देर रात तक परिजनों से गांव के तमाम बुजुर्गों और मित्रों के बारे में पूछता रहा बातें करता रहा।सुबह दैनिक क्रियाओं से फुर्सत होकर वह गांव के बचपन के अपने मित्रों और बुजुर्गों के घर एक एक कर गया लोगों से बातें की, लेकिन ज्यों ज्यों बातें करता गया त्यों त्यों उदासी सी ह्रदय में उतरती गई।

वह जब नाना के घर से चला था तो उसके मन में जो चित्र था गांव को लेकर जिज्ञासा थी मन में ,वह साकार न हो सकी थी।वह सोच रहा था कि छोटे से इस गांव में किसी गुलशन की तरह हर जाति विरादरी के युवा थे, बुजुर्ग थे बच्चे थे कितना अपनापन था ,वह अब नहीं हैं।रमई ,कन्हैया, दामोदर, बेनी, कोमल, भजन, रूपन, बाबू, बेनी, छेदा, चुरई,डोरी, सकटे, मोहन, टीका आदि आदि जिनमें किसी को चाचू किसी को ताऊ और बाबा कहते थे उनमें से कोई नहीं है अब,।उसे याद आ रहा था जब वह गांव के किसी मोहल्ले में कभी पहुँचता था तो सब इतना दुलार करते थे कि पता नहीं चलता था कि सगे चाचू, ताऊ या बाबा हैं या गांव बस्ती के रिश्ते के।

बचपन के साथी बहुत खुश थे, मुझे अपने बीच इतने बड़े अंतराल के बाद देखकर। वह सभी अपने अपने बच्चों से मेरा परिचय दे रहे थे,कह रहे थे कि, यह इसी गांव के हैं और बड़े कुआं के सामने वाला जो घर है ,पहले इनका ही था वह घर, अब उसमें इनके परिवार के लोग रह रहे हैं,,साथ ही कुछ झिझकते हुए कहते कि, इनके माता पिता बचपन में ही गुजर गए थे इसलिए ये ननिहाल चले गए थे।वहाँ ख़ूब पढ़े लिखे और सरकारी नौकरी पा गए हैं ,और इनके बड़े ठांठ हैं अब वहाँ। बच्चे टुकुर टुकुर देख रहे थे उसकी ओर,,यह देखकर मनोहर ने बच्चों के सिर पर हाँथ फेरकर कहा, कि बेटा अपने बापू के साथ मेरे घर आना तुम सब लोग।इतना कहकर फिर मन की आँखे अतीत में खो जातीं मनोहर की।वह देख रहा था कि गांव के वह खलियान, वह पुराने पेंड, वह कुआं वह ताल तलैया सब के सब उन बुजुर्गों की तरह अदृश्य हो गए थे।

अजीब खाली खालीपन पसरा दिखाई पड़ रहा था, जबकि छप्परों और झोपड़ियों के स्थान पर पक्के मकान थे।गांव की उबड़ खाबड़ गलियां खड़ंजा युक्त हो गईं थीं,लेकिन वह उदास था ह्रदय व्यथित था । उसे कुछ पुराने साथियों के अलावा कोई भी तो पहचानने वाला नहीं था अब इस गांव में।उसका मन कह रहा था ,कि काश एकबार बस एकबार वह बुजुर्ग उसे दिख जाएं और वह उनसे लिपट कर कहे कि ,,देखो बहुत दिन बाद ही सही लेकिन तुम सबसे मिलने तुम्हारा मनोहर आया है।

वह आँखों में छलक आए आँसुओं के साथ धीरे धीरे अपने परिजनों के घर की ओर चल दिया, अपने साथियों से यह कहते हुए कि सुबह मिलते हैं भैया। मनोहर का मन बहुत भारी था और वह मन से मन का सम्वाद कर रहा था कि काश,, समय चक्र ने मुझे मेरे गाँव से विलग न किया होता तो, जो आज गांव में नहीं दिख रहे ,उनको अंतिम समय में इस दुनियां से उस दुनियां में जाते देख तो लेता ,तो शायद यह बेकली आज मुझे न होती।

रामबाबू शुक्ला
शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश