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सफर



क्यों हुआ निराश तू, सफर से ओ मुसाफिर |

ये तो वो लम्हा है, जो यूं ही गुजर जायगा ||


मंज़िल जब होगी हांसिल , यकीनन |

तुझे बस ये तेरा सफर ही याद आएगा ||


कितनी कर ले कोशिश, ये वक़्त कभी ठहरा नहीं |

तू खुद गुलाम है इसका, इस पर तेरा पहरा नहीं ||


लाख रोकना चाहेगा तू ,पर वक़्त गुज़रता जायगा |

दुनिया की इस चकाचौंध में, उलझा ही रह जायगा ||


पैर तेरे जब डगमग होंगे, आँखों से देख न पाएगा |

चाह के भी उठ न सकेगा, एसा वक़्त भी आएगा ||


जीवन का ये फलसफा, जब सिमटता ही जायगा |

अंत समय में तुझको, ये तेरा सफर ही याद आएगा ||


दूर झमेलों से निकल, दुनिया अपनी आबाद कर |

आँखे अपनी बंद कर , फिर गहरी सी एक साँस भर ||


दुख दर्द को अपने भूलकर, तू हल्का आत्मसात कर |

एक सुकूं मिलेगा दिल को, दिल हल्का हो जायगा ||


भाग दौड़ तू कर ले कितनी, कुछ भी हाथ न आएगा |

अंत समय में तुझको , ये तेरा सफर ही याद आएगा ||


सचिन तिवारी
इंदौर, मध्य प्रदेश