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गणेशोत्सव और बालगंगाधर तिलक

  

प्राचीनतमा हमारी संस्कृति में ज्ञान, विज्ञान की सभी बातें भरी पड़ी है। कहीं -कहीं व्यास रुप में (विस्तार से), कहीं समास रुप में (संक्षिप्त रुप में) तथा कहीं सूत्र/संकेत के माध्यम से।

हमारे हरेक गतिविधियों को उम्दा बनाने का उदाहरण भरे पड़ें हैं, जरुरत सिर्फ जानने और परिस्थितियों के अनुरूप उपयोग करने का।

अवतारों के पीछे का रहस्य विज्ञान, देवि -देवताओं के वाहन और वासस्थान, तथा उन्हें पूजने -प्रसन्न करने का तौर तरीका सब अद्भुत एवं जानकर हैरान करने वाला है।।

महान विभूति, सुयोग्य शिक्षक,परम वैदुष्य, अविस्मरणीय लेखक, अद्भुत समाज सुधारक और मातृभूमि को अन्यायी/अत्याचारियों से मुक्त कराने के लिए आजीवन मुखर रहने वाले, अहर्निशम् यातानाओं के बीच न झुकने और टूटने वाले *लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक* ने भगवान गणेशोत्सव के सार्वजनिक आराधना के माध्यम से बिखरे समाज को एकजुट करने, बुद्धि -विद्या के बल पर आगे बढ़ने तथा सदा सबको साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति को प्रश्रय देने के लिए प्रचारित, प्रसारित किया।।

केवल पूजा कर लेने भर से काम नहीं होगा,देखना और सोचना पड़ेगा कि हमारे अगल-बगल में कोई भूखा-नंगा तो नहीं सोया है,दवा - सेवा और सहयोग के विना कोई कराह तो नहीं रहा है? छोटी ही सही कोई विघटनकारी तत्व सक्रिय तो नहीं,आप अपने बल, शक्ति और ज्ञान का समाज के विकास में कितना उपयोग कर पा रहें हैं? प्रदर्शन के फेर से बचें और बचाएं, हमको इससे क्या मतलब? इस महामारी से बचें, भगवान आकर पापियों का सबक सीखाएंगे तो फिर आप क्या करेंगे, भगवान भाव के भूखे होते हैं, भावनाओं को व्यापक फलक दें, घर -घर में ज्ञान -सतर्कता का अलख जगाएं, युवाओं को सही दिशा दिखाएं, नौनिहालों को नित -नये बढ़ और गढ़ रहे समस्याओं से अवगत कराएं।

अंत में भगवान गणेश जी के पावन चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहना चाहेंगे कि वैचारिक मतभेद को मनभेद नहीं बनाएं, समस्या है तो समाधान भी होगा ही, साजिशों को समझें और समय रहते सावधान हो जाएं, वर्ना दूबारा अगर उसी दलदल में गये और फंसे तो वहां से वापस आना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा कारण टेक्नोलॉजी इतनी हाई है कि आप हाय -हाय करते बाय -बाय हो जाएंगे।

होगी शांति चारों ओर एक दिन,

हो मन में यह विश्वास।

न दिखे कहीं कोई लाचार,

तेजोमय हो चरित्र- आचार।।



डॉ० विजय शंकर

सहायक शिक्षक

आर एल सर्राफ उच्च विद्यालय देवघर