मैं भी मरूंगा,
वह भी मरेगा,
सब कोई मरेगा,
कोई नहीं बचेगा!
ऐसा सुनते - सुनते,
कान पक गए,
सुबह से रात हो गई,
रात से सुबह हो गई!
दिन सप्ताह बीते,
महीने ऋतुएं बीती,
साल दर साल बीते,
पर यह बात नहीं बीती!
मैंने सोचा मैं कैसे,
मैं क्यों मर सकता हूं,
मैं नहीं मर सकता हूं,
मैं कैसे मर सकता हूं!
मैं, वह और वो,
सब मरे से हैं,
क्योंकि वो सब के सब,
सामग्री ऐसी जुटाते हैं!
मैं नहीं मरने का,
उपाय किया है,
धन से दूर रहकर भी,
अमृत का पान किया है!
बांकी धनालोभी,
सब मरे से हैं,
लाश ढो रहे ढोंगी,
सब मरे से हैं!!
डॉ० सतीश "बब्बा"
ग्राम व पोस्ट= कोबरा,
जिला - चित्रकूट, उत्तर - प्रदेश,
पिनकोड - 210208.