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चयनित कविताएं

 

जीवन के अंतर्बाह्य यथार्थ अर्थात भीतर- बाहर रचे बसे कटु - मधुर जीवनानुभवों से निर्मित कविताएं

शिखर जैन

हाल ही में शैलेन्द्र चौहान की कविताओं का नया संग्रह चयनित कविताएं नाम से आया है। इस संग्रह की कविताओं को पढ़कर यह यह स्वतः समझा जा सकता है कि रचनाकार के सरोकारों का दायरा विस्तृत है और वैयक्तिक भावों के अलावा कवि के सामाजिक सरोकार भी बेहद पैनी और सधी भाव-भंगिमा में इन कविताओं में समाहित हैं । कविता जीवन से आत्मीयता और प्रेम को प्रकट करने वाली विधा है और इसकी कला में हृदय के भाव सघन एवं विरल समान शैली में इन दोनों ही रूपों में प्रकट होते हैं । इस दृष्टि से इस कविता संग्रह में संकलित कविताओं का अर्थ विवेचन किया जा सकता है क्योंकि इनमें कवि के जीवन के यथार्थ में उसके सुख – दुख के साथ सिमटी अन्य तमाम बातें भी हमारे परिवेश और इसके यथार्थ से ही उपजी प्रतीत होती हैं ।

इधर कभी फ़ुर्सत मिले
मेरे घर आओ/देखो...
घर की दीवाल पर
मक़बूल का चित्र
क्रंदन है जिसकी आत्मा में...
उसकी अस्मिता खो चुकी है

दरवाज़ों पर जड़ी
सप्तधातु की पट्टियाँ
मद्धम पड़ गई जिनकी चमक

एक पुराना पेड़
लगातार पतझड़ का ऐलान करता
हमेशा हरहराता,
रुंडमुंड खड़ा पाताली नल
यह सब/मेरा घर-द्वार

आँगन में खड़ी पत्नी
जिसके सपने दूर गगन में
उड़ती चिड़िया की तरह
मेरा हृदय रेगिस्तान...
टीन-कनस्तर,
क्रॉस, मरियम की वेदना

लगातार सोचता हूँ मैं
फ़र्क!
मेरे और दूसरों के घर का
और... घर और बेघर का

आदमी के बीच से संवेदनाएँ गायब होती जा रही हैं। रहीम ने बहुत पहले इसी संवेदना रूपी पानी को बचा लेने की बात कही थी-‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।’ किन्तु आज आदमी की आँखों से सारा पानी बह गया। अब किसी दूसरे का गला दूसरे के दुःख से नहीं भर्राता, दूसरे की आँखें किसी अन्य की पीड़ा से नहीं छलछलाती। कवि की तकलीफ यही है-

गाँव से क़स्बा,
क़स्बे से शहर
सिकुड़ता गया आसमान

जहाँ कुछ भी नहीं था
वहाँ था दृष्टिपर्यन्त गगन
आँखों में नीले सपने, सम्मोहक!

जहाँ कुछ था
वहाँ ठहरा हुआ था समय

और जहाँ बहुत कुछ था
वहाँ विलुप्त हो चुकी थी
ललक दृष्टि की

जीवन से सच्चे लगाव को प्रकट करती इन कविताओं में मानव मन के सरल निश्छल भावों की अभिव्यक्ति समायी है और किसी पावन स्वर की तरह से कोई जीवन राग इन कविताओं में गूँजता अभिभूत करता है । कविता में चिंतन उसके अर्थ को गहराई प्रदान करता है और इसके घेरे में ही कवि कविता में एक संवाद को कायम करता सामने आता है ।

उत्ताल तरंगों की तरह
फैल गया है
मेरे मन पर
सराबोर हूँ मैं
उल्लसित हूँ

झाग बन उफन रहा है
जल की सतह पर
धरा के छोर पर
छोड़ गया है निशान
क्षार, कूड़ा-करकट अवांछित

यही है फेनिल यथार्थ
गुंजार और हुंकार बन
बिखर गया है तटीय क्षेत्र में
एक प्रक्रिया, एक घटना
एक टीस बन

इस संग्रह में संकलित तमाम कविताएँ अपनी अभिव्यक्ति के दायरे में जीवन की सहज अनुभूतियों और संवेदनाओं को प्रकट करती हैं और इनमें मनुष्य के मन के विविध रंगों का समावेश हुआ है ।

सुबह हो चुकी है
सूरज तपने लगा है

सर पर लकड़ी का
गट्ठर लादे एक औरत
बढ़ रही है शहर की तरफ
खेतों के किनारे-किनारे
उसके नंगे पैरों के निशान
उभर रहे हैं इस विश्वास के साथ
कि कल की रोटी
उसकी मुट्ठी में है

रोटी जो सर्फ रोटी
और कुछ नहीं है
न संवेदन, न फ्रस्ट्रेशन, न उच्छवास
सब कुछ रोटी में समा गया है

जब गट्ठर की बोली लगेगी
हो सकता है लोग उसकी भी बोली लगाएं
वह कुछ नहीं समझेगी
उसकी समग्र चेतना
एकाग्र होकर लकड़ियों में सिमटी रहेगी
उससे परे जो हो रहा है
उसकी बला से

कविता में प्रकृति अपने विभिन्न रूप रंगों से मनुष्य के मन में जीवन के अनंत रूपों की सृष्टि करती है और इसके साथ मनुष्य का निरंतर एकाकार होता जीवन उसके आत्मिक लोक को नैसर्गिक सौंदर्य से सँवारता है। प्रस्तुत संग्रह की कविताओं में प्रकृति के प्रति कवि का सच्चा अनुराग प्रकट हुआ है और इसकी नीरवता में असीम आनंद और गहन शांति से उसका मन भर उठता है–

जैसे व्याप गया हो तेज
नारंगी रंग में
और बढ़ गया हो आकार
कई गुना

धीरे धीरे छिप रहा है सूर्य
अरावली पर्वत श्रृंखला के पीछे
शान्त आकर्षक यह रूपॐ
होते हैं जितने तेजस्वी
अस्त होते हैं
उतनी ही गरिमा के साथ

कविता की रचना करने वाले कवि को सर्जक भी कहा जाता है और वह लोक सौंदर्य की सृष्टि से समाज और मनुष्य के मन को नया रूपरंग प्रदान करके नवजीवन का संचार करता है । इस काव्य संग्रह की कविताओं के फलक पर उजागर होने वाली जीवनानुभूतियों में संसार की सुंदरता के साथ समाज में व्याप्त विषमता और इसकी अनेकानेक विसंगतियों का चित्रण भी समान रूप से अंकित हुआ है । इसलिए काव्य चेतना की दृष्टि से इन कविताओं में व्यवस्था के प्रति आक्रोश और क्षोभ के भावों का भी प्रकटन हुआ है और अपने रचना विन्यास में कवि ने यथार्थ के अनेकों लक्षित प्रसंगों को कथ्य के रूप में उठाया है । मानवीय धरातल पर कवि ने धर्म – जाति और वर्ग के ताने बाने में आदमी के अमानवीय उत्पीड़न – शोषण और दमन के अनेक प्रसंगों को उजागर किया है और वह हर जगह संघर्षरत मनुष्य के साथ प्रतिबद्धता से खड़ा दिखायी देता है ।उसके गहन प्रेमपूर्ण आत्मालाप में जीवन के समस्त पाखंड और झूठ सच के उजाले में जीवन की व्यर्थ की बातों की तरह से निरर्थक महसूस होते हैं । कवि अपनी कल्पना के क्षितिज पर इस प्रकार जीवन यथार्थ के दोनों सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष पर चिंतन करता अपनी रचना यात्रा में सार्थक दिशा की ओर प्रवृत्त होता सामने आता है ।

यदि बड़ी उर्वर ज़मीन थी वह
युगों तक
तब आज रेगिस्तान यह
रेंगता सा
कहाँ से आया ?

शैलेन्द्र जी की कविताओं में जीवन का अंतर्बाह्य यथार्थ उनके मन प्राण के भीतर – बाहर रचे बसे उनके इसी कटु मधुर जीवनानुभवों से निर्मित होता है और इनमें कवि काफी सहजता से सरस्वती की वंदना करता हुआ माँ के प्रेम स्नेह ममता की छाँव में उसको जीवन का कर्ज चुकाने की चाहत से उत्कंठित समाज में औरतों की नयी पुरानी जिंदगी के बारे में सोचता डर और भय से घिरती मौजूदा दुनिया में आम आदमी के रोजमर्रा के जीवन संघर्ष के साथ सुबह और शाम की आवाजाही में इन कविताओं के भीतर जीवन के यथार्थ को समेटने की कोशिश से घिरा दिखायी देता है ।

चरागाह सूखा है
निश्चिंत हैं हाकिम-हुक्काम
नियति मान
चुप हैं चरवाहे

मेघ नहीं घिरे
बरखा आई, गई

पशु विवश हैं
मुँह मारने को
किसी की खड़ी फसल में

हँस रहे हैं आकाश में
इन्द्र देव

यहाँ वह राजनीति के जनविरोधी छल छद्म के अलावा आतंकवाद के रूप में हिंसा की अमानवीय वारदातों के बीच नफरत और भ्रष्टाचार के दलदल में फँसे देश को जानने पहचानने की जद्दोजहद से भी गुजरता दिखायी देता है ।

बहुत लोग गेहूं की रोटी खाते हैं
चावल खाते हैं
कुछ ज्वार बाजरा मक्का भी खाते हैं
दलहन तिलहन सब्जी और फल खाते हैं
उनके विभिन्न उत्पाद और व्यंजन जिव्हा का स्वाद बढ़ाते हैं

खाते सभी हैं गरीब हों अमीर हों या मध्यवर्गीय
कोई भूखा नहीं रहना चाहता
और जो भूखा होता है वह खाना चाहता है
उसकी सबसे बड़ी चाहत होती है अन्न

कवि कुछ कविताओं में खास चुटीले और तीक्ष्ण अंदाज में कथ्य को प्रकट करने में सफल रहा है । इनको पढ़ते हुए ऐसा लगता है मानो कविता में कोई किस्सागोई कर रहा हो।. इस प्रकार इनमें स्वभावत: पात्र – परिवेश – घटना और संवाद के आसपास समाज की अनेक छोटी – बड़ी सच्चाइयों को समेटकर कविता रचता दिखायी देता है । इस प्रकार अभिव्यक्ति के निकष पर इस संग्रह की कविताओं की विषयवस्तु के बारे में यह कहा जा सकता है ।इनको छोटे कैनवास की सार्थक कविता के रूप में भी देखा जा सकता है और इसकी रचना प्रक्रिया में अवलोकन और अनुभूति के अलावा स्मृति की भी एक सार्थक भूमिका है ।

पुस्तक : चयनित कविताएं
कवि : शैलेन्द्र चौहान
मूल्य. : 225/- रुपये
प्रकाशक : न्यूवर्ल्ड पब्लिकेशन, दिल्ली