अनुलोम-विलोम काव्य की एक कठिन विधा है। इस विधा का अवतरण होते समय मानसिक श्रम भी अधिक लगता है। नीचे लिखी पहली व दूसरी पंँक्तियाँ अनुलोम हैं तो तीसरी व चौथी पँक्तियाँ उन दोनों की विलोम हैं। अर्थात् आप उल्टा पलटी करके पढ़कर इनके हिन्दी भावानुवाद जरूर पढ़िए।ऐसे काव्य चित्र काव्य/अधम काव्य या अवर काव्य के नाम से जाने जाते हैं। अधम शब्द के बारे में स्पष्ट करना चाहता हूँ कि अधम का आशय यहाँ अधमता से कतई नहीं है अपितु अधम काव्य की एक श्रेणी है। क्यों कि काव्य है तो स्वयं में श्रेष्ठ है।ऐसे काव्य सार्थक अर्थात् आशय सम्पन्न होना चाहिए। आज सोचा इस विधा या कला का भी आनन्द लिया दिया जाए। मुझे विश्वास है कि आप सभी मनीषियों को आनन्द आयेगा। आपको अच्छा लगे तो आशीर्वाद अवश्य दीजिए। तो ऐसे कई प्रयोग आपके सामने रखता रहूँगा। धीरे-धीरे गम्भीरता से पढ़िए तो ही समझ में आयेगा।
अनुलोम:
चारण "प्राण" रहन मत पूछ गा ले गीत शिवाले के।
चाब चना कारीपर हूस खाले पी जल थाले के।।
विलोम:
केले थाल जपी ले खास हूर परी का नाच बचा।
केले वाशित गीले गाछ पूत मनहरण "प्राण" रचा।।
अनुलोम का भावानुवाद
हे चारण ! कवि "प्राण" का रहन सहन कैसा है यह बात मत पूछ। अरे मन्द बुद्ध! तू तो शिवालय के गीत गा ले और प्रसिद्ध कारीपर गांँव के भुने हुए चने चबा-चबाकर अच्छी तरह खा ले, साथ ही भरे हुए कुण्डों से जल पी ले।
रहन=रहन-सहन
शिवाले के=शिवालय के
चाब=चबा
चना=भुने हुए चने
कारीपर= एक गाँव का काल्पनिक नाम
हूस=मन्दबुद्धि वाला
थालों= कुण्डों तालाबों
विलोम का भावानुवाद
क्योंकि जो केलों का थाल था वह जाप करने वाला एक खास जपी (एक तपस्वी) ले गया है। अब यहाँ केवल हूर की परी का नाच ही शेष बचा है।
यहाँ रखे हुए जो केले थे वे भी बासी हो चुके हैं और उनकी जो गाछ थी ( केलों की फर) वह गीली हो चुकी है। इसलिए हे पुत्र! मन को हरने वाली इस मनोहारी रचना को जिसे "प्राण" ने रचा है, उसे पढ़ और आनन्द भोग।
केले थाल= केलों के थाल
जपी=तपस्वी
हूर परी=स्वर्ग की अप्सरा
वाशित=बासी
गाछ=केलों की फर को गाछ भी कहते हैं। एक एक गाछ में न जाने कितने केले लटकते हैं।
मन हरण=मन को हरने वाले मनोहारी
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
"वृत्तायन" 957 स्कीम नं. 51
इन्दौर- 6 मध्य प्रदेश