बस इक फर्ज जरूर निभाना,
अबकी बारिश में।
पर्णी एक जरूर लगाना,
अबकी बारिश में।
पारा पार हुआ इस बारी,
था अड़तालिस के,
उस पीड़ा को भूल न जाना,
अबकी बारिश में।
लथपथ खूब हुआ करता था,
स्वेद कणों से तू,
बौछारों से खूब नहाना,
अबकी बारिश में।
कन्क्रीट के वन-उपवन हैं,
गाँवो शहरों में,
जंगल हरित नया उपजाना,
अबकी बारिश में।
महकेगी जब प्यारी धरती,
हर सूं रौनक से,
मधुर तराने खूब सुनाना,
अबकी बारिश में।
नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड