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कमज़ोर नहीं बेटियां



किरण हाथ में कागज का टुकड़ा लिये खुशी खुशी आवाज़ लगाती हुई आती है।

"पापा। मम्मी। (रुक कर) अरे ! क्या हुआ? आप लोग इस तरह मुंह लटकाए क्यों बैठे हैं? मैं समझ गई। आप दोनों यही सोच रहे होंगे कि पता नहीं किरण के रिजल्ट का क्या हुआ होगा। आप दोनों सही सोच रहे हैं (थोड़ा मुंह लटका कर ) मैं.....(खुशी से) मैंने बी ए पास कर ली है वो भी फर्स्ट क्लास से।

(हाथ में के कागज सामने दिखाती है) ये रहा मेरा रिजल्ट। माता पिता का कोई जबाव न सुनकर किरण असमंजस में पड़ गई। (रुककर) अब क्या हुआ? रिज़ल्ट से खुश नहीं हैं आपदोनों?

(कमर पर कागज लिए हाथ को रखते हुए) ओह समझी। मैं यानि आपकी किरण बिटिया अब बड़ी हो गई है। पढ़ाई भी बहुत हो गई है। इसके लायक लड़का ढूंढ़ना पड़ेगा। अगर रिश्ता मिला तो फिर दहेज़ की फ़िक्र होगी। कर्ज लेंगे। फिर भी पूरा नहीं कर पाए तो उन दहेज़ के लोभी के पैरों पर अपनी पगड़ी रख कर गिड़गिड़ायेंगे। लड़के वाले अपने पैरों की ठोकर से आपके सम्मान को फुटबॉल की तरह किक मारेंगे यूं.......(पैर को इस तरह चलाती है मानों गेंद को शॉट मार रही है।)

(अचानक किरण हाथ उठा सिर घुमा कर) बस पापा। अब ये मत कहना कि ये समाज की बनाई रीत है। बेटी जब बड़ी हो जाती है तो उसकी शादी कर देनी पड़ती है। क्योंकि ये रिवाज सदियों से चली आ रही है। पापा! अचानक से ये रुसवाई की बात क्यों? क्या सचमुच मैं और बेटियों की तरह पराई लगने लगी हूं। बचपन में आपकी बाहों का झूला , घोड़ा बनकर सवारी कराना, रूठने पर खिलौना देकर मना लेना, जनम दिन मनाना सब रेत के बनाए घरौंदे की तरह ढह जायेंगे।

मुझे पता है समाज में बेटियों की बात नहीं सुनी जाती। जब तक बड़ी नहीं हो जाती है। घर की लाडली, लक्ष्मी, आंगन की रौनक और न जाने क्या क्या हुआ करती हैं बेटियां। सयानी हुई नहीं कि शादी की चिंता में दुबले होने लगते हैं हर मां बाप।

पापा। मैं खूब पढ़ लिख कर बड़ा बनना चाहती हूं। आपकी, मम्मी की और इस देश के लिए जीना चाहती हूं। शादी भी करूंगी मगर ऐसे लड़के से जिसकी सोच मेरे से मिलती हो। जो किसी की बेटी को सिर्फ पत्नी का दर्ज़ा नहीं स्त्री का सम्मान देना जानता हो। किसी बेटी को मां बाप की पराई अमानत नहीं अपने घर की इज्ज़त की तरह मान दे।

हां पापा। वो दिन भी आएगा। समाज में क्रांति आएगी। बदलाव आयेगा। बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं समझा जाएगा। ये बारिश की बूंदें, उड़ते बादल, नदियों का कल कल कितना मनभावन लगेगा। हां पापा हां मम्मी। बेटियां भी सबकुछ कर सकती हैं। आसमान की ऊंचाइयों को छू सकती है, इस धरती को अपने कदमों से नाप सकती हैं। डॉक्टर बनकर लोगों की पीड़ा कम कर सकती हैं, इंजिनियर बनकर देश के विकास में हाथ बंटा सकती हैं। पायलट बनकर स्पेस में उड़ सकती हैं। साइंटिस्ट बनकर सपनों का इजाद कर सकती हैं। क्योंकि बेटियां स्त्री के कई रूप में जीकर इस संसार को संवारने का काम कर रही है। एक पत्नी, एक मां,एक बेटी, एक बहन, एक बहु इन तमाम रिश्तों को जीने वाली को कमजोर क्यूं समझा जाता है।

बेटियां कमज़ोर नहीं पुरुषों की ताक़त होती हैं। उसके विजय रथ के पहिए को अपनी ऊंगली की कुंडली बनाकर युद्ध के दौरान उनका हौसला बढ़ाती हैं। बेटियां किसी से कभी भी कमज़ोर नहीं। मां बाप की खुशियां, भाइयों की सखा, बहनों की सहेलियां तो होती ही हैं। ससुराल की लक्ष्मी, वंश की जननी, मर्दों की जरूरत भी होती है। बेटियां कमजोर कैसे हो सकती है। बेटियां कमज़ोर नहीं साहस और हिम्मतवाली होती है। मौका मिले तो सरहद पर भी खुद को साबित कर सकती है।



महेश अनजाना ,
जमालपुर