अम्बर होता, अचला होती,
शिव की नगरी काशी होती|
पर जान मृत्यु ना आएगी,
कुढ़ता नर की विषता होती||
यदि मृत्यु न होती|
संतोषी वृति विलीन होती,
विद्रोही सोच प्रबल होती|
अपने भी रखते द्वेष-द्वन्द,
मन से मर्यादा भी खोती||
यदि मृत्यु न होती|
जीना भी हो जाता दुर्लभ,
अपनी ही रिपु सेना होती|
जो मानव होते सरल, सौम्य,
उन पर विपदा सदैव होती||
यदि मृत्यु न होती|
अपने भी लगते अनजाने,
चंहु ओर शून्यता ही होती|
करता रहता मन रुदन सदा,
कटुता हर पग-पग पर होती||
यदि मृत्यु न होती|
नहीं दीखता जीवन का पथ,
निशा दिवस में घेरे रहती|
वरण मृत्यु का करने पर भी,
इस कलयुग में मृत्यु न होती||
यदि मृत्यु न होती|
बार-बार मरते घुट-घुट कर,
फिर भी शांति न मन को होती|
मानव जीवन पाकर के भी,
परम आत्मा हर पल रोती ॥
यदि मृत्यु न होती|
प्रो० सत्येन्द्र मोहन सिंह
रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली