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दीपोत्सव संदेश


अंधकार पर जीत हित, जलते दीप सगर्व।

देता जय - संदेश शुभ, दीपावलि का पर्व।


'तमसो मा ज्योतिर्गमय', सारस्वत युग - धर्म।

सद्प्रवत्तियों से जुड़ा, दीपमालिका - मर्म।


वनवासी प्रभु रामसिय, बिता चतुर्दश वर्ष।

घर लौटे साकेत जब, दीपक जले सहर्ष।


मिटे अँधेरा हृदय का, फैले दिव्यालोक।

जनजीवन से दूर हो, भूख, रोग, भय, शोक।


देती मानवमात्र को. दीपावलि संदेश ।

गति प्रकाश की ओर हो, त्याग छल कपट वेश।


अमा रात्रि में दीप मिल, करते चेतन - यज्ञ।

मर्म समझ संदेश का, मानव बने गुणज्ञ।


दीपोत्सव संदेश है, साथ चलें, सुख ओर।

सबके जीवन में सहज, आए नूतन भोर।


सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे सुखिनः सन्तु ।

जोड़ें ज्ञान - प्रकाश से, स्नेहिल जीवन - तन्तु।


बने दीप मानव स्वयं, करे अँधेरा दूर।

अन्यायी की एकदिन, सत्ता होगी चूर।


शुभ संकल्पों के लिए, दीपोत्सव वरदान।

आलोकित होकर स्वयं, दूर करें अज्ञान।


आओ! हम मिलकर चलें, शुभ प्रकाश की ओर।

नव ऊर्जा से काट दें. तम - पतंग की डोर।


बिजली के सम्मुख कभी,भले न कुछ लघु दीप।

परम्परावश एक दिन, बन तो गए महीप।


रुई की बाती तेल सँग,मिलें-जलें शुभ दीप।

भयवश पास न आ सके, तम बलवान महीप।


सिद्धि मिले संकल्प से, साधक दीप अनन्य।

ज्योति हेतु बलिदान दे, करता जीवन धन्य।


दीप धन्य हैं साधु सम. करते दिव्य प्रकाश।

सूर्य - चंद्रमा से बड़ा, उनका मन - आकाश।


बाह्य तिमिर से भी घना, अंतरतम अज्ञान।

दोनों पक्ष प्रदीप्त हों, फले ज्ञान - विज्ञान ।


महानगर के साथ ही, ज्योतित हों सब गाँव।

निर्बल, निर्धन, दुखित पर, चले न तम का दाँव।


राम अयोध्या में बसे, विग्रह लें पहचान।

उन्हें बसा लें हृदय में, दिव्य रूप में मान।


ज्योति पर्व पर दीपगण, गाते स्वागत गान।

ज्ञान देवि! माँ दीजिए, प्रज्ञा का वरदान।


जगमग में भूलें नहीं, मानवता का अर्थ।

कुम्भकार के हाथ की, कला न जाए व्यर्थ।


खेल - खिलौने क्रय करें, रखें कला का मान।

शिल्पकार को मिल सके,रोटी का सामान।


छलकाओ अमृत कलश, धन्वन्तरि भगवान।

जन - जन को बल - बुद्धि दे, आयुर्वेद महान।


लक्ष्मी धन - वर्षा करें, हो प्रसन्न संसार।

भूखे को रोटी मिले, हाथों को व्यापार।


भले पटाखे फोड़िए,इतना रखना ध्यान।

निर्धन की भी झोपड़ी, रहे नहीं सुनसान।


ज्योति - पर्व की सीख है, चलें प्रकृति के साथ।

स्वच्छ स्वस्थ वातावरण, रखना अपने हाथ।


धन त्रयोदशी शुभ दिवस, क्रय कर लें सामान।

हो अभाव की पूर्ति जब, घर हो स्वर्ग समान।


भैया दूज सुपर्व है, भाई - बहिन का प्यार।

रोली - अक्षत से बढ़े, सिद्धि - समृद्धि अपार ।


सुख,धन और समृद्धि के, शुभ सूचक त्यौहार।

जन - मन को जोड़े रखे, आत्मीय व्यवहार।


गौरीशंकर वैश्य विनम्र

117 आदिलनगर, विकासनगर

लखनऊ 226022