बेज़ान हो गया वो, कभी जो था हरा भरा।
एक पत्ता टूटा पेड़ से, और ज़मीं पर जा गिरा।।
आज सूख कर गिरा
वो, अंततः धूल से भरा।।
आज उन्हीं हवाओं संग, वो बहता चला गया।।
जाते जाते ही ये
बात वो कहता चला गया।।
पतझड़ तक ही शायद, इसकी कमी खलेगी।।
फिर से मिलेगा
नवजीवन, चक्र को दोहराना है।।
नितिन तिवारी
इंदौर, मध्य प्रदेश